Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
अंधक
।
कश्यप को दिति से उत्पन्न पुत्र यह अत्यंत पराक्रमी था। अपनी उग्र तपश्चर्या के बल पर सब देवताओं को जीतने के लिये, इसने शंकर से वरदान मांगा। परंतु विष्णु तथा शंकर के सिवा सबको जीतने का वरदान उन्होंने दिया । तदनन्तर यह ससैन्य अमरावती में प्रविष्ठ हुआ तथा इन्द्र इसकी शरण में आया। इसके बाद इन्द्रकी उचैःश्रवस, उर्वशी आदि अप्सरायें तथा इन्द्राणी को लेकर जब वह लौट रहा था तब देवताओं ने इसके साथ युद्ध किया। परंतु उसमें उनका पराभव हुआ तदनंतर अंधक पाताल में रहने लगा । अन्त में देवताओं के कहने से, विष्णु ने इसके साथ युद्ध किया । उसमें इसका पराभव होने के पश्चात् इसने विष्णु की स्तुति की, तथा शंकर से युद्ध करने की संधि प्राप्त होने के लिये वरदान मांगा। तब विष्णु ने इसे कैलाशपर्वत हिलाने को कहीं। ऐसा उसने करते ही शंकर का तथा इसका युद्ध प्रारंभ हुआ। उसमें शंकर को उसने मूर्च्छित कर दिया परंतु शंकर जागृत होते ही पुनः युद्ध प्रारंभ हुआ । अंधक के प्रत्येक रबिंदु से पुनः दैत्य उत्पन्न होने लगे। उस समय शंकर ने चामुंडा का स्मरण करने पर उसने इसका समस्त रक्त प्राशन कर लिया। तब इसने शंकर की प्रार्थना की। शंकर ने शिवगणों में इसकी स्थापना कर, इसका भृंगीश नाम रखा ( स्कंद ५.३.४५ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
यह उज्जयिनी में राज्य करता था । इन्द्र के कथनानुसार शंकर ने इसके साथ युद्ध किया । उस में अपना पराभव हो रहा है, यह देखते ही इसने माया निर्माण कर, अंधकार उत्पन्न किया तथा देवताओं का हरण कर लिया । अंत में नरादित्य उत्पन्न हो कर, उसके द्वारा निर्मित प्रकाश की सहायता से, शंकर ने इसका वध किया। इसका पुत्र कनकदान (५.२.२६) ।
महिषासुर की सेना का एक प्रमुख असुर देवों के साथ हुए महिषासुर संग्राम में, विष्णु के साथ इसका अविरत पचास वर्षों तक संग्राम चल रहा था। अन्त में विष्णु ने अपने गदा प्रहार से इसे मूच्छित कर दिया (दे. भा. ५.६ ) | यह आठवाँ सुप्रसिद्ध संग्राम है ( मत्स्य. ४७. ४१ - ४४ ) । इस में शंकर ने असुरों को मारा (बायु, ९७.८१-८४) ।
अपणी
सात्वतपुत्र अंधक से अंधक वंश का प्रारंभ होता है । अंधकपुत्र महाभोज को दो पुत्र थे । प्रथम कुकुर तथा द्वितीय भजमान । यादवों में कुकुर वंश स्वतंत्र है । उस में उग्रसेन कंसादि हुए अंधक वंश भगमान शाखा की उपाधि है। इसी अंधकवंश में भारतीय युद्ध का प्रसिद्ध वीर कृतवर्मा उत्पन्न हुआ (मा. ९ २४ ७ २४ विष्णु. ४.१४.२७) सात्यतपुत्रं भजमान का वंश उपलब्ध नही है भरमान के पुत्र, अंधकपुत्र भजमान के वंश में सामील हुए ऐसा ह. . में लिखा है (१.३८.७-९ वं. अंधिगु श्यावाश्व – कुच ऋचाओ का द्रष्टा । (ऋ. ९.१०१.१ - ३ ) |
I
अंध्र - ( सो. अनु. ) बलि के छः पुत्रों में से कनिष्ठ । दुष्यन्तपुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इसे जीता ( भा. ९. २०.३० ) ।
२. (सो. यदु. ) सात्वत तथा कौसल्या का पुत्र ( ह. वं. १. ३७. २)। अंधक तथा काश्यदुहिता को कुकुर, भजमान, शमि तथा कम्बलबर्हिष ऐसे चार पुत्र हुए ( ह. वं. १. ३७. १७ ) ।
२. (स.) यह वायु तथा ब्रह्मांड के मतानुसार नृपदक्ष का पुत्र ( इंदु देखिये) ।
• अन्नाद कृष्णपत्नी मित्रविंदा का पुत्र ( मा. १०. ६१.१६.) ।
अन्यतरेय -- स्वरों के विषय में मत देनेवाला एक आचार्य (ऋ. प्रा. २०९ ) ।
अन्यादृश् -- पांचवे मरुद्रणों में से एक । अन्वग्भानु - (सो. पूरु. ) मनस्यु को मिश्रकेशी नामक अप्सरा से उत्पन्न पुत्र (म. आ. ८८ ) ।
अपनाप-- ब्रह्मांड के मतानुसार ऋविशष्य परंपरा में भरद्वाज का शिष्य ( व्यास देखिये) ।
-
अपरदारका दूसरे ब्रह्मांड के द्वार पर स्थित एक देवता । नारद ने तपश्चर्या कर के इसे पश्चिम द्वार पर स्थापित किया। चैत्र कृष्ण नवमी को बलि दे कर जो इसकी पूजा करेंगे, वे पातकों में से मुक्त होंगे तथा उनकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होगी (स्कंद. १.२.५३ ) ।
अपराजित - कृष्ण तथा लक्ष्मणा का पुत्र ( भा. १०. ६१ ) ।
२. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र इसका वध भीम ने कि या (म. भी. ८४.२१ ) ।
३. एकादश रुद्रों में से एक ।
२४
४. कश्यप तथा कद्रू के पुत्रों में से एक । ५. कालेयांश एक क्षत्रिय (म. आ. ६८ ) । अपर्णा -- महादेव की पत्नी । सती की दक्षयज्ञ में मृत्यु होने के बाद, हिमालय को मैना से जो कन्या हुई, वह अपर्णा । यहाँ इसने पूर्वपति की प्राप्ति के लिये पत्ते भक्षण