Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
अपर्णा
प्राचीन चरित्रकोश
अभिभू
कर, तपस्या प्रारंभ की । फिर भी उनकी प्राप्ति न होने के | अप्नान--भृगु के वश में से एक ऋषि (ऋ. ४.७. कारण उसने पणों का भी त्याग कर दिया तथा महादेव | १; ८.१०२.४ )। को पतिरूप में प्राप्त किया। इस लिये इसे उपरोक्त नाम अप्रतिपिन--(मगध. भविष्य.) मत्स्य के मतानुप्राप्त हुआ। इसेही तर के पश्चात् उमा नाम प्राप्त हुआ। सार श्रुतश्रवस् का पुत्र । (अयुतायु देखिये)। इसका दत्तक पुत्र उशनस् (ब्रह्माण्ड. ३.१०.१-२१; ह. अप्रतिम-ब्रह्मासावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से वं. १. १८.१५-२०)।
एक । __अपवर्मन्--(सू. इ.) भविष्य के मतानुसार ध्रुव- | अप्रतिमौजस्-ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों संधि का पूत्र । इसने दस हजार वर्षों तक राज्य किया। में से एक । अपष्ठोम--औपलोम देखिये।
__अप्रतिरथ--(सू. इ.) कुवलाश्व का नामांतर (म. अपस्यौष--अंगिरस गोत्र का एक मंत्रकार |
व. १९५.३०)। अपहारिणी--ब्रह्मधान की कन्या।
२. (सो. पूरु.) भागवत के मतानुसार, रतिभार के
तीन पुत्रों में से कनिष्ठ पुत्र । इसका पुत्र कण्व ।। अपाग्न्येय--अंगिराकुल का एक गोत्रकार । अपांडु--अंगिराकुल का एक गोत्रकार ।
अप्रतिरथ ऐन्द्र--सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१०३; ऐ. भपान--तुषितदेवों में से एक ।
ब्रा. ८.१०; श. बा. ९.२.३.१-५)। भपांतरतम-एक ब्रह्मर्षि (सारस्वत देखिये)।
अप्रीत-यजुर्वेदी ब्रह्मचारी। 'अपांनपात्-एक देवता (ऋ. २.३५ )। यह निथु
अभय--स्वायंभुव मन्वन्तर में धर्म को दया से द्रुप अग्नि होगा। यह पानी में प्रकाशित होता हैं। इसे
उत्पन्न पुत्र । अग्नि कहा गया है। उसी प्रकार अग्नि को अपानपात्
२. (स्वा. प्रिय.) इध्मजिह्व के सात पुत्रों में से कनिष्ठ। कहा गया है।
यह प्लक्षद्वीप के सातवें वर्ष का अधिपति था। - अपाला-अत्रि की कन्या। यह ब्रह्मज्ञानी थी।
। ३. विश्वामित्र गोत्र का एक गोत्रकार । इसके शरीर पर कोढ होने के कारण, पति ने इसका
४. धृतराष्ट्रपुत्र । इसका वध भीम ने किया (म. द्रो. त्याग कर दिया था। पितृगृह में रह कर, इन्द्र को प्रसन्न
१०२.९६)। करने के लिये, इसने तरस्या प्रारंभ की। इन्द्र को सोम
५. (सो. पूरु.) विष्णु के मतानुसार मनस्युपुत्र । - अत्यंत प्रिय है, ऐसा ज्ञात होते ही, यह सोम लाने के | अभयद ऐसा अन्यत्र पाठ है ।
लिये नदी पर गई । वहाँ प्राप्त सोम इसने मार्ग में ही अभिजित्--(सो. यदु.) नलराजा का पुत्र । इसका - चबा कर देखा। चबाते समय जो आवाज हुआ उसे | पुत्र पुनवेसु ।
सुन कर इन्द्र वहाँ आया। अपाला ने सोम इन्द्र को। २. अंगिरस गोत्र का एक गोत्रकार । दिया । इन्द्र ने प्रसन्न हो कर इसकी इच्छायें पूर्ण की। अभितंस--भविष्य मत में अधितंस का पुत्र । इसके पिता का गंजापन दूर किया, इसकी खेती उर्वरा अभितपस् सौर्य--मूक्तद्रष्टा (ऋ.१०.३७)। बनाई ( इसके गुह्यभाग पर केश उगाये), तथा इसका कुष्ट- | अभिप्रतारिन् काक्षसेनि-कुरुवंश का एक राजपुत्र । रोग आख पर घिस कर नष्ट कर दिया। यह कथा सायणा- यह तत्त्वज्ञानविवाद में निमम रहता था (पं. ब्रा. १०.५.
चार्य ने शाट्यायन ब्राह्मण से ली हैं। इसे मूलभूत मान | ७: १४.१.१२.१५; जै. उ. बा. १.५९.१; २.१.२२, २. . कर ही ऋग्वेद का एक मुक्त बना होगा (ऋ ८.९१)। २.१३, छां. उ. ४.३.५)। इसके जीवनकाल में ही इस सूक्त में एकबार अपाला का निर्देश आया हैं। इसके पुत्रों ने इसकी संपत्ति का बँटवारा कर लिया । अपास्य-अयोज्य देखिये।
इसका पुरोहित शौनक था (जै. उ. ब्रा. १.५९.२)। अपि--सावर्णि मनु का पुत्र ।
__ अभिभू-(सो. क्षत्र.) काश्यपुत्र । यह द्रौपदीअपिकायति-भृगुकुल का एक गोत्रकार | स्वयंवर में होगा (म. आ. १७७.९)। भारतीय युद्ध - अपीतक-(आंध्र. मविष्य.) मत्स्य के मतानुसार में यह पांडव पक्ष में था (म. द्रो. २२.१९) । इसको लंबोदर का पुत्र।
वसुदानपुत्र ने मारा (म. क. ४.७४)। प्रा. च. ४]
२५