Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अकारादि-वृत
(५९)
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बन्धुजीव (गुलदुपहरी), अरहर, मूर्वा, वासा, [१६३] अमृतादि घृतम् (१) तुलसी, कूड़ा, पाठा, वेर, असगन्ध, आक की
(र. र. वातर.) जड़, मुल्हैठी, पद्माख. इन्द्रायन, कटेली, लाख, अमृतायष्टिकाश्मर्यद्राक्षान्दारग्वधामरैः । *कोविदार, शतावर, कटभि (कप्टक शिरीष), दन्ती, गोक्षुरेक्षुरवृश्रीरवृद्धदारबलावृषः ।। अपामार्ग, पृष्ठपर्णी, रसौत, सफेद कोयल, नखी, | रास्नैरण्डवरातिक्ताभीरुशुण्ठीकणोत्पलैः। कूठ, देवदारु, फूलप्रियंगु, विदारी कन्द, मुल्हैटी | धात्रीरससमं सर्पिः साधितं त्रिगुणे जले ॥ का सार, करंजवेके फल, बच, हदी. दारु हल्दी, गम्भीरोत्तान वातास्त्रं त्रिकजचोरुजानुजम् | लोध्र प्रत्येक ११-१। तोला, इन को पीसकर इस
हन्त्युग्रं क्रोष्टुशीप च रुगाहं सानिलं ज्वरम् ।। कल्क और ४ सेर पानी, बकरी का मूत्र तथा मेदोदावर्तबध्नादीनिदमायुबलपदम् ।। गोमूत्र प्रत्येक १२--१२ सेर के साथ ४ सेर
गिलोय, मुल्हैठी, खंभारी, दाख, नागरमोथा, घीका पाक सिद्ध करे। यह धी विष नाशक,
अमलतास का गूदा, देवदारु, गोखरू, तालमखाना, अपस्मार, क्षय, उन्माद, भूतबाधा, ग्रहरोग, गर
श्वेत पुनर्नवा, विधारा, बला, बासा, रास्ना, एरण्ड विष विकार, उदररोग, पाण्डुरोग, कृमिरोग, गुल्म, प्लीहा, उरुस्तम्भ, कामला, हनुग्रह, स्कन्धग्रह
मूल, त्रिफला, कुटकी, सतावर, सोंठ, पीपल, और आदिको पीने या अभ्यंग करने या नस्य लेनेसे
नीलोफर, इनके कल्क और धी तथा घी के बराबर आराम करता है यह घृत विषवेगसे मृत प्राणीको
आमले के रस में ३ गुना पानी मिलाकर यथाभी जीवित कर देता है।
| विधि घृत बनावे । [१६२] अमृतषट्पलघृतम् (वृ. नि. र.) यह घृत त्रिक, जचा और जानु तक फैले नागरं चविका क्षारः पिप्पलीमूल चित्रकम। हुवे, गम्भीर तथा उत्तान वातरक्त, उग्र कोष्ट. कृष्णा च पलिकान भागान घृतप्रस्थं विपाचयेत॥ शीष, रुग्दाह सन्निपात. वातज चर, मेद, उदावर्त
| और बद आदि का नाश करता है तथा आयु और भृङ्गवेररस प्रस्थं मधुप्रस्थं तथैव च। एकाहिक द्वयाहिकं च व्याहिकं च चतुर्थकम् ।। बल वर्द्धक है । एतान्सर्वज्वरान्हन्ति स्थूलं च कुरुते भृशम् ।। १६४] अमृतादि घृतम् (२) (वृ.नि.र.) दुर्नामश्वासकासनं वलवर्णाग्निवर्द्धनम् ॥ अमृता त्रिफला पटोलयासैः,
सोंठ, चव्य, यवक्षार, पीपलामूल, चीता, ___संपाविधिवद्धृतं विपक्वम् ।। और पीपल, प्रत्येक ५-५ तोला, धृत १ सेर, | विषमज्वरनाशनं प्रधानं, अद्रकका रस १ सेर, शहद १ सेर। यथाविधि
क्षयगुल्मारुचिकामलापहारि ।। घृतपाक करे । यह घृत दैनिक, तिजारी, चौथिया गिलोय, त्रिफला, पटोलपत्र, धमासा, और आदि ज्वर और बवासीर श्वास तथा खांसीका अमलतास इनके क्वाथ तथा कल्कसे सिद्धघृत नाश करता है तथा बल, वर्ण और अग्नि वर्द्धकहै। विशेषतया विषमञ्चर, तथा क्षय, गुल्म अरुचि *कालकचनार
। और कामला का नाश करता है।
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