Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-रसप्रकरणम्
( ३११)
(१०२६) कुष्ठकुठारो रसः
रसगन्धकताप्याशिला(र० र० स०। अ० २०)
जत्वम्लवेतसम्।
अष्टमांशगुडं साज्यमाक्षिकं रसस्य कर्ष कर्षों द्वौ गंधकात्कज्जलं तयोः।
स्याच्छतारुषि।। तिलपर्ण्यलिमण्डीनां स्वरसैः कृतभावनम्।। कर्ष कर्ष वचाधात्रीकणातीक्ष्णकृमिच्छिदाम्। पारा, गन्धक, सोना मक्खी भस्म, ताम्र भस्म, शाणं विषस्य कर्षाधं जीरकस्य सितस्य च।। शिलाजीत और अमलवेत १-१ भाग तथा गड़ सबका पलार्ध मृतताग्रस्य तथा शुण्ठयाश्च मर्दितम्। आठवां भाग लेकर सबको एकत्र मिलावें। भृङ्गाम्भसि घटे स्निग्धे पचेच्चणक
इसको घी और शहद में मिलाकर सेवन करने से संमिताः।।
शतारुषि (कुष्ठ भेद) का नाश होता है। वटिकाः कुष्ठविश्वाग्नित्रिफलासैंध- (१०२८) कुष्ठनिकृन्तनो रसः
वान्विताः।
(र० र०। कुष्ठ०) कुर्यात्कुष्ठकुठाराख्यो रसोऽयं सर्वकुष्ठजित्।। । शुद्धसूतं विषं गन्धं तुल्यं ताप्यं शिलाजत्।
'शुद्धतीक्ष्णं मृतं लौहं सर्वं मधु दिनत्रयम्।। एक कर्ष पारद और २ कर्ष गन्धक की कज्जली
| काकमाचीदेवदाल्योः कर्कोटेश्च द्रवैर्दृढम्। करके तिलपी (लाल चन्दन) और मण्डी के स्वरस की
मईयेद्भूधरे पाच्यं त्रिदिनन्तु तुषाग्निना।। भावना देकर उसमें बच, आमला, पीपल, तीक्ष्ण लोह
निष्काई लेहयेत्क्षौद्रैः रसः कुष्ठनिकृन्तनः। भस्म, और बायबिडंग का वर्ण १-१ कर्ष, मीठातेलिया
भल्लातवाकुची पथ्या विडङ्ग चित्रकं तथा।। ४ माशे, सफेद जीरा आधा कर्ष और ताम्र भस्म तथा
| जीरकं बदरीमूलं कटतैलेङ्गदेन तु। सोंठका चूर्ण आधा आधा पल मिलाकर घोटें। फिर उसे | भक्षयेदनुपानोऽयं हन्ति कुष्ठं विचर्चिकाम्।। चिकने घड़े में भांगरे के रस में पकावें। जब पकाते पकाते गोली बनाने योग्य हो जाय तो उसमें कूठ, सोंठ, पारा, मीठातेलिया, गंधक, सोनामक्खी भस्म, चीता, त्रिफला, और सेंधा नमक का प्रक्षेप। डाल कर | शिलाजीत और तीक्ष्ण लोह भस्म, समान भाग लेकर ३ चने के बराबर गोलियां बनावें। इस के सेवन से सब | दिन तक मकोय. देवदाली और ककोडे के रस में घोटें। प्रकार के कुष्ठ नष्ट होते हैं। व्यवहारिक मात्रा १ से ४ फिर ३ दिन तक भूधरयन्त्र द्वारा तुषाग्नि में पकावें। गोली तक।
इसे शहद में मिलाकर आधा निष्क की मात्रानुसार
निम्नलिखित अनुपान के साथ सेवन करने से कष्ठ और (१०२६ अ) कुष्ठजितरसः
विचर्चिका का नाश होता है। (र० र० म० अ० २०)
___ अनुपान-भिलावा, बाबची, हैड, बायबिडंग, देखो "कृष्णमाणिक्य रस"
चीता, जीरा, बेरीकी जड़की छाल, कड़वातेल और हिंगोटकातेल। चूर्ण योग्य चीजों का चूर्ण करके तेल में
मिलावें। (१०२७) कुष्ठनाशनो रसः (र० र० स०। अ० २०)
(१०२९) कुष्ठरुद्रेश्वरो रसः *किन्हीं किन्हीं के मत में कट, मोंठ, चीता, त्रिफला
(र० चि० म०। ३ स्वबकः) और सेंधा प्रक्षेप नहीं प्रत्युत् अनुपान है।
पारदं गन्धकं घृष्ट्वा पलद्वयमितं पृथक्।
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