Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(३२४)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
हरीतकी लवङ्गं च व्योपं चातिविषं तथा ॥ । इन्हें सुह में रखने से जिव्हा, होठ, दांत, मुंह, कारवी यासममृता बृहतीद्वयमक्षकम् । गले और तालुके समस्त रोग नष्ट होते हैं । पृथक्कर्षद्वयं ग्राह्य सूक्ष्मचूर्ण तु कारयेत् ॥ [१०६९] खदिरादिगुटिका (४) सर्वैः समं खादिरं च मेकयित्वा विभावयेत् ।
(ग. नि. । गुटि.) दाडिमत्वक्तथा क्षुद्राखदिराम्भोभिरार्द्रकैः ।। पद्माह्ववक्रागुरुकुङ्कुमैश्च बब्बूलत्वग्दलक्वाथैराटरूपजलैस्तथा।
तुल्यांशकै श्लक्ष्णशिलाविपिष्टैः । सप्तधा भावयेदबध्वा गुटिका खादिरी मता ॥ सर्वैः समः स्यात्खदिरस्य सार: कासश्वासौ निहत्त्याशु दुस्तरौ चिरजावपि ॥ सारङ्गदर्पस्फटिकाधिवासिताः ॥ खरसार, पोखरमूल, काकड़ासिंगी, कायफल, 1
वल्लप्रमाणा गुटिका विधेयाभारंगी, हरड़, लौंग, त्रिकुटा, अतीस, कलौंजी,
स्वाः सेविता नन्ति कफप्रमेहम् । धमासा, गिलोय, कटेली, कटेला, और बहेड़ा प्रत्येक
हिकाग्निसादारुचिपीनसांश्च वस्तु २॥-२॥ तोला लेकर महीन चूर्ण करें फिर रोगानशेषान् खलु चास्य जातान् ।। उसमें इस सब चूर्ण के बराबर कत्था मिलाकर उसे सूताभ्रहेमसहिता पूर्वोक्तां भक्षयेत्प्रातः अनार की छाल, कटेली, खैर, अदरक, कीकर की
नाम्ना खादिरवटिका कथितेयं सिंहगुप्तेन।। छाल, कीकर के पत्ते और अडूसे के क्याथ की ___ पद्माक, ककड़ासिंगी, अगर और केसर (या सात भावना देकर गोलियां बनावें।
नागकेसर ) बराबर बराबर लेकर सिलपर महीन इनके सेवन से पुरानी कष्टसाध्य खांसी और
पीसें और उसमें सबके बराबर खैरसार और १-१ श्वास का अत्यन्त शीध्र नाश होता है। भाग रससिन्दुर, अभ्रकभस्म और सोना भस्म १०६८] खदिरादिगुटिका (३) मिलाकर कस्तूरी और कपूर से सुगन्धित करके ३
(वृ. यो. त.। १२८ त; ग. नि.) रत्ती की गोलियां बनावें। खदिरस्य तुला तोयद्रोणे पक्त्वाऽष्टशेषिते ।
। इनके सेवन से कफप्रमेह, हिचकी, अग्निमांद्य, जातीकोशेन्दुपूगा च चातुर्जातमृगाण्डजैः॥ । अरुचि और पीनस तथा इनसे उत्पन्न हुवे अन्य पृथक्कर्षमितैः पिष्टमलयित्वा चणोपमाम।। रोगोंका नाश होता है। गुटीं कृत्वा मुखे धृत्वा तां निहन्त्यखिलान्गदान [१०७०] खदिरादिगुटिका (५) जिह्वोष्ठदन्तवदनगलतालुसमुद्भवान् ॥
__ (ग. नि. । गुटि.) ६। सेर खैरसार को ३२ सेर पानी में पकावें | जातीफलैलादलकुङ्कुमानि जव आठवां भाग शेष रह जाय तो उसे छान कर
लवङ्गकङ्कोलकपुष्कराणि । फिर पकावें और गाढ़ा होने पर उसमें जावीत्री, ।
वराङ्गकरयुतान्यमूनि कपूर, सुपारी, चातुर्चात (तेजपात, दालचीनी, नाग- समानि भागानि निशाकरस्य ।। केसर, इलायची) और कस्तूरीका चूर्ण १।--१॥ भागद्वयं स्यान्मृगनाभिजायाः तोल मिलकर चनेके बराबर गोलियां बनावें । सप्रतिकायाः खल तर्यभागः।
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