Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकर
[एकारादि
अथ एकाराद्यवलेहप्रकरणम् (९१५४) एलाद्योवलेहः . इलायची, तेजपात, पद्माक, नागकेसर, द्राक्ष
( हा. सं. । स्था. ३ अ. १०) ( किशमिश ) नागरमोथा, मुलैठो, पीपल और एलादलानि सहपद्मकनागकेशरै
खजूर समान भाग तथा खांड सबके बराबर लेकर दक्षिा घना च मधुपिप्पलिका समांशा । (शहदमें मिलाकर) अवलेह बनावें । एषां समांशसितशर्करयुक्तलेहः । खजूरिकां समभिहन्ति च रक्तपित्तम् ॥ इसके सेवनसे रक्तपित्त, दाह, ज्वर, श्वास, दाहं ज्यराति श्वसनं च विमोहतृष्णा- | मोह, तृष्णा, मूर्छा और रक्तवमनका नाश होता है। मूर्च्छी निहन्ति रुधिरं वमिजित् तथैव ॥
इति एकाराघवलेहपकरणम्
अथ एकारादिघृतप्रकरणम्
(९१५५) एरण्डाचं घृतम्
क्वाथ-अरण्डमूल, बड़ी कटेली, गोखरु, (व. से. । शूला.)
पुनर्नवा (बिसखपरा) की जड़, गोखरुकी जड़, एरण्डमूलं बृहती वदंष्ट्रा
शतावर, हंसपदी, खरैटीको जड़, माषपर्णी, मुद्गपर्णी, पुनर्नवा गोक्षुरकस्य मूलम् ।
विदारीकन्द, बेलकी जड़की छाल, कमलनाल, चीताशतावरी हंसपदी बलाच
मूल, कटेली, जीवक, ऋषभक, दो प्रकारको दाम महासहा क्षुद्रसहा विदारी॥
(दर्भ), मीठे बिजौरे के वृक्षकी जड़, सहदेवी और बिल्वस्यमूलं समृणालचित्रं
देवदारु, समान भाग लेकर आठ गुने पानी में पकावें निदग्धिकाजीवककर्षभौ च ।
और चौथा भाग म्हने पर छान लें। कुशे कुशाख्या सहदेवदेवे
___ यह क्वाथ ४ सेर, घी १ सेर, इन्हीं (कायकी) पचेत्कषायं जलपादशेषम् ॥
ओषधियोंका कल्क १० तोले और बिजौरे का रस क्वाथेन कल्केन पचेत्तु धीमान् रसेन तुल्यं फलपूरकस्य ।
४ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकायें। जब उत्कृष्टदोषो यस्य स्याद्यस्य
जलांश शुष्क हो जाय तो घीको छान लें। शूलो न शाम्यति ॥
जो शूल अन्य किसी औषधसे शान्त न होता तत्र सपिरिदं दद्यात्प्रसह्य विनिवारणम् । हो वह इसे पीनेसे अवश्य नष्ट हो जाता है। यह सर्वस्थानगतं शूलमेतद्धन्ति चतुर्विधम् ॥ हर स्थानके और हरेक दोषसे उत्पन्न शूल को बलएरण्डाद्यमिदं सर्पिः कृष्णात्रेयेण पूजितम् ॥ ' पूर्वक नष्ट कर देता है।
इति एकारादिघृतपकरणम्
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