Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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५७५.
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लेपप्रकरणम् ]
परिशिष्ट (९३८२) कविकादिलेपः शिरोभितापे सघृतैः शिरः शीतैः प्रलेपयेत् ।।
___(वं. से. । क्षुद्र.) ___कैथ, चूका, बेरी और मकोय; इनके पत्तोंको कट्वीकापालिकामूलं पूतीकं सैन्धवं तथा ।
। पीसकर शिर पर लेप करनेसे बालककी शिरपीडा, शम्बूकेन श्लक्ष्णपिष्ठं चर्मकीलकनाशनम् ॥
छर्दि और अतिसार का नाश होता है । कुटको, कण्टकपाली की जड़, पूतिकरच
___ यदि बालकका शिर तपता हो तो शीतल सेंधा नमक और घोंघे समान भाग लेकर बारीक |
ओषधियों ( चन्दनादि को ) घी में मिलाकर लेप पीसकर लेप करने से चर्मकीलका नाश हो जाता है। करना चाहिए । (९३८३) कदल्यादिलेपः (१)
(९३८६) कपित्थादिलेपः (व. से. । स्त्रीगेगा.)
( वा. भ. चि. अ. १ ज्वरा.) कदलीदीर्घन्तानां भस्मालं लवणं शमी-।।
कपित्थमातुलङ्गाम्लविदारीरोध्रदाडिमैः ।
बदरी पल्लवोत्थेन फेनेनारिष्टजेन वा ॥ बीजं शीताम्भसा पिष्टं लोमशातनमुत्तमम् ।।
लिप्तेऽङ्गे दाहरुम्मोहच्छर्दिस्तृष्णा च शाम्यति ।। केले और अरल की भस्म, हरताल, सेंधा
__ कैथके पत्ते, बिजौरे नीबूके पत्ते, खट्टा बेर, नमक, और शमी (छोंकर) वृक्षके बीज समान
बिदारीकन्द, लोध और अनारके पत्ते; इन्हें पीसकर भाग लेकर शीतल जलके साथ पीसकर लेप करनेसे
लेप करने से अथवा बेरोके पत्तों को पीसकर थोडे बाल गिर जाते हैं।
पानी में मिलाकर हाथरो फेन उठाकर वे फेन (९३८४) कदल्यादिलेपः (२) ।
| लगाने से या इसी प्रकार नीमके पत्तोंके फेन बना ( र. र. । स्त्री. )
कर लगाने से शरीर की दोह, पीड़ा, मोह, छर्दि दग्ध्वा शङ्ख क्षिपेद्रम्भास्वरसे तच्च पेषितम् ।। और तृष्णाका नाश होता है। तुल्याललेपनादन्ति रोमगुणादिसम्भवम् ।। (९३८७) कपीतनादित्वग्लेपः
शंख भस्म और हरताल को केलेके रस में | (ग. नि. । विसर्पा ३९) घोट कर लेप करनेसे गुह्य स्थानके बाल गिर |
कपीतनवटाश्वत्थप्लक्षोदुम्बरजासत्व वः । जाते हैं।
लेपनाच्छोफवीसर्परक्तपित्तप्रसाधनाः ॥ (९३८५) कपित्थपत्रादिलेपः सिरस, बड़, अश्वत्थ ( पीपल वृक्ष ), पिल
(ग. नि. | बालरोगा. ११) खन और गूलर; इनकी छाल (पानी के साथ) पीस पत्रैः कपित्थचाङ्गेरीबदरीकाकमाचिजः। कर लेप करनेसे शोथ, बिसर्प और रक्तपित्तका शिरोरुक्च्छर्यतीसारनाशनं मूनि लेपनम् ॥ | नाश होता है ।
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