Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 635
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ककारादि इसे मध या मन्दोष्ण जलके साथ सेवन (९५१६) कुष्ठकुठाररसः करनेसे प्लीहा, अग्निमांद्य, अरुचि, पार्श्वशूल, प्रमेह, (र. का. थे. । कुष्ठा.) कुष्ठ, पाण्डु, हृद्रोग, गुल्म, विषम ज्वर, भगन्दर, श्वास और दुःसाध्य वातकफज रोग नष्ट होते हैं। पृथक् पलं पलं ग्राह्यं सूर्यभम्म शिलाजतु । यह बल मांस और ओज वर्द्धक है । लोहभस्म मृतं तानं गन्धक विषमुष्टिका ।। (मात्रा-१॥ माशा ।) त्रिफला चित्रकं चैव चूर्णयेकज्जलोपमम् । (९५१५) कुमुदेश्वरो रसः दवा पलं मृताभ्रस्य मध्वाज्याभ्यां विलोडयेत् (र. प्र. सु. । अ. ८) घृतभाण्डे विनिक्षिप्य निष्कैकं भक्षयेन्नरः। सूनभस्म समहेमभस्मक रसः कुष्ठकुठारोऽयं गलत्कुष्ठनिकुन्तनः ।। मौक्तिकं च रसपादटङ्कणम् । स्वर्ण भस्म, शिलाजीत, लोह भस्म, ताम्र गन्धमत्र कुरु सर्वतुल्यकं भस्म, शुद्ध गंधक, शुद्ध कुचला, हरे, बहेड़ा, चूर्णितं तुषजलेन गोलकम् ॥ आमला, चीतामूल और अभ्रक भस्म समान भाग लेपयेन्मृदुमृदा विशोषितं लेकर सबको एकत्र मिलाकर खरल करके सुरमेके पाचितं सिकतयन्त्रमध्यतः । समान बारीक कर लें। तदनन्तर उसे घी और वासरैकमथ शीतलीकृत. शहद में मिलाकर धृतभावित पात्र में भर कर सुरक्षित श्चूर्णितो मरिचमाक्षिकैः प्लुतः ॥ रक्खें । मात्रा-१ निष्क । भक्षितो हि कुमुदेश्वरी रसो इसके सेवनसे गलत्कुष्ठ नष्ट होता है । राजयक्ष्मपरिशान्तिकारकः॥ पारद भस्म, स्वर्ण भस्म और मोती ४-४ (९५१७) कुष्टनरसः भाग, सुहागा १ भाग तथा शुद्ध गंधक १३ भाग (र. प्र. सु. । अ. ८) लेकर सबको एकत्र मिलाकर कांजीमें खरल के और फिर सबका एक गोला बनाकर ( सुखाकर, शुद्धं सूतं गन्धकं वै दिमाग कपड़ेमें लपेटकर ) उसपर मिट्टीका लेप कर दें। कन्यानीरैमर्दयेद्वासरैकम् । इसे सुखाकर बालुकायन्त्रमें रखकर एक दिन पाक शुद्धं लोहं मारितं भागमेकं करें और फिर स्वांगशीतल होने पर गोलेको निकाल गोलं कृत्वा लोहपाने निधाय ।। कर इसकी मिट्टी आदि छुड़ाकर पीस लें। किञ्चित्किश्चिद्गोजलं सत्र इसे काली मिर्चके चूर्ण और शहदके साथ | सिश्चेच्चुल्यामग्निं यामयुग्मं शनैश्च । सेवन करानेसे राजयक्ष्मा रोग नष्ट होता है। तीब्राग्नि वै कारयेधाममध (मात्रा-१ रत्ती ) स्वाझं शीतं चूर्णयेतत्पयवात् ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700