Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 675
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृमिः परिशिष्ट (चि. प. प्र.) ६५३ (१६) कृमिरोगाधिकारः चूर्ण-प्रकरणम् ९५२८ कृम्यङ्कुशो रसः कृमि समूहको नष्ट ९२४१ कम्पिल्लकाचोयो० कृमिरोग (सरल) करता है। धूप-प्रकरणम् ९४३० ककुभादिधूपः खटमल, जू आदि मिश्र-प्रकरणम् ९०५८ आखुकादियोगः कृमि ९५३४ कदलीकन्दयोगः उदरकृमि शीघ्र निकल जाते हैं । (सरलयोग) रस-प्रकरणम् ९५२७ कृमिविनाशनरसः समस्तकृमि रोग (१७) क्षयराजयक्ष्माधिकारः चूर्ण-प्रकरणम् घृत-प्रकरणम् . ८८४९ अमृताचंघृतम् उग्रक्षय, कास, श्वास, ८८२१ अश्वगन्धायोगः शस्त्राघात जन्य क्षीणता | दाह, शोथ (सरलयोग) | ९५७८ खजूरायं घृतम् ज्वर, श्वास, कास, स्वर८८२४ अश्वगन्धाधुद्वर्तनम् क्षयके रोगीके शरीर पर मालिशसे लाभ होता है आसवारिष्ट-प्रकरणम् ९२५५ काकजवानील । ९३७८ कुष्माण्डासवः कास, श्वास, क्षत, क्षय, पुष्प्योः योगः शोष रोग (सरल योग) शोथ, अतिसार __ भंग अवलेह-प्रकरणम् रस-प्रकरणम् ८९३२ अग्निरसः सज्वर साध्यासाध्य क्षय ८८३९ अमृतप्राशावलेहः राजयक्ष्मा, पाण्डु, अ | ८९३६ अपूर्वो रसः अग्निवर्द्धक, क्षय, उदररोग तिसार (पारदभस्मका सरलयोग) ९११३ उच्चटाघमोदकः एकादश लक्षणयुक्त ८९७८ अमरकलाक्षय, हृद्रोग, मूत्रकृच्छू, निधिरसः राजयक्ष्मा श्रमजनित निर्बलता । ८९९३ अश्वत्थादियोगः क्षय रोग ९३१६ कृष्णादि योगः क्षय (सरल योग) ९५१५ कुमुदेश्वरो रसः , , For Private And Personal Use Only

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