Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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६६८ भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[ रसायन ९४९४ कामेश्वर चू० बल, वीर्य, आनन्द वर्द्धक, । ९५२५ कुसुमायुध रसः ३ मासमें बलि पलित अग्निदीपक
नष्ट होकर अनेक स्त्रियोंके
साथ समागम करनेकी ९४९५ , रसः अत्यन्त कामवर्द्धक
शक्ति आ जाती है। ९४९६ ,
मिश्र-प्रकरणम् वीर्य वर्द्धक, स्तम्भक, ,
९१३६ उच्चटादि मर्दनम् अयोनि व्यभिचार ज. स्त्रीद्रावक, क्षीण शरीरको
नित दोष नष्ट होते पुष्ट करने वाला
और शिश्न दृढ़ होता है
(४३) वात व्याध्यधिकारः कषाय-प्रकरणम्
घृत-प्रकरणम् ९०१८ आईक स्व० अण्डकोषों की वायु ८८५२ अश्वगन्धा धृ० वातव्याधि नाशक, मांस
वीर्ष वर्धक ( सरल योग) ९२०२ करबादि का० आमवात
तैल प्रकरणम्
८८६७ अश्वगन्धापं तै० खञ्जता, मूकता, पक्षाचूर्ण-प्रकरणम्
घात, अस्थिच्युत ९२५२ कल्याणलवणम् वातव्याधि, अर्श,गुल्म, ९१५६ एरण्डतैलयो० कटिवात
अग्निमांच ९३६९ कुसुम्भापं तै० अर्दित, गृध्रसी, पक्षा
घात, दाह, योनि और गुटिका-प्रकरणम्
गुद पीड़ा, सुप्तिवात ८८२८ अग्नि मुख ३० वात व्याधि
शिरशूलमें अत्युत्तम
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गुग्गुलु-प्रकरणम्
छेप-प्रकरणम् ९१५३ एरण्डादि गु० वातव्याधि, आमवात, | ९३९२ करबादि ले. ऊरुस्तम्भ
शोथ, स्रोतस्थित कफ ९४२९ कोलादिले. यातव्याधि
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