Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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६६४
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मिश्र
-
तैल-प्रकरणम्
९०११ अष्टवर्गः रक्तवर्द्धक, ज्वरनाशक ९३४० कनकसुन्दर ते. दुष्ट स्वेद नाशक, । ५१८४ ओषधि प्रतिनिधिकान्तिवर्द्धक
गणः किस ओषधिके अभाव ९३५२ कर्पूराचं तै० पीड़ा शामक
में कौन ओषधि लेनी मिश्र-प्रकरणम्
चाहिये ९०१० अष्टगुणमण्डः अग्निदीपक, बलवर्द्धक, ९५६४ कुष्ठादियोगः ____ ल्हसन, मदिरादि की बस्तिशोधक
मुख दुर्गन्ध
(३७) मुखरोगाधिकारः चूर्ण-प्रकरणम्
| ९०८१ इरिमेदाचं तै० दन्त पीडा, दारुण दन्त ९२६० काकोदुम्बरिका
चालन, हनुमोक्ष, शीताद मूल योगः मुखसे रक्त स्राव होना
आदि ९२६४ किरात सिक्तादि कल्कः जिहाकी जड़ता
लेप-प्रकरणम् ९२८४ कुष्ठादि चूर्णम् गलशुण्डिका
| ९१८३ ओष्ठस्कुटनतैल-प्रकरणम्
नाशक लेपः होठ फटना ८८६१ अरिमेदार्थ तै० शीर्णदन्त, दन्तविधि, शौषिर, शीताद, दन्तहर्ष,
मिश्र-प्रकरणम् कृमिदन्त, चालन, दालन, | ९५९८ खदिरादियोगः दुर्बल दांतों को दृढ़ अधिमांसादि
___ करता है
(३८) मूत्ररोगाधिकारः कषाय-प्रकरणम् | ९१४२ एलादिकषा० मूत्रावरोध
| ९२२९ कुष्माण्डरसयो० त्रिदोषज मूत्रकृ. ८७८३ अतिबलादिक्वा० मूत्रकृच्छ्र (सरल योग) ९.१७ भारग्वधादिका० मुत्रकृच्छू
चूर्ण-प्रकरणम् ९०६९ इक्षुरसादियो० मूत्रकृच्छूको अवश्य ९१०९ उर्वारुबीजक० मूत्रकृच्छ्र , (स० यो०)
नष्ट करता है। स०यो० ९१११ उर्वारुवीजादि यो० पित्तज मूत्रकृच्छु
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