Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
पर्सिशष्ट
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हैं । इसके प्रभावसे वन्या स्त्रीको पुत्र प्राप्ति होती | बीजानि दद्याग्निचुलस्य दार्वी है। यह हृध है और आहारमें तुरन्त रुचि दुरालभा तिक्तकरोहिणी च । उत्पन्न करता है।
दुर्योग्रगन्धाऽतिविषा गुडूची इसे महर्षि चरकने प्रकाशित किया है (?) किराततिक्तं गजपिप्पली च ॥ (९५१२) कुचिलाशोधनम् (१) । सर्वाण्युपाहत्य तु चूर्णमेषां
___ भागांशयुक्तं लवणं द्विरंशम् । ( यो. र.)
अयोरजः स्यात्रिगुणं च युक्तं किश्चिदाज्येन संभृष्टो विषमुष्टिविशुध्यति। ।
फलत्रिकं स्याञ्चतुरंशयुक्तम् ॥ ___ कुचले को जरा घी में भून टेनेसे वह वर्गीकृतं तदघृतभाजनस्य शुद्ध हो जाता है।
पिवेच्च मधेन सुखोदकेन । __(कुचलेको पहिले २ दिन तक दूधमें भिगोए
चूर्ण यथासात्म्यबलानुरूपं रक्खें । जब वह फूल जाए तो उसके ऊपरका
प्लीहाग्निसादारुचिपाशूलम् ॥ छिलका और अन्दरकी पत्ती निकालकर सुखा लेना
प्रमेहकुष्ठानय पाण्डुरोग चाहिए तदनन्तर उसे घीमें भूनना चाहिये ।)
हृद्रोगगुल्मं विषमज्वरं च। (९५१३) कुचिलाशोधनम् (२) ।
भगन्दरं वासगदांश्च इन्यात् (यो. त. । त. १७)
मुदुस्तरान् वातकफोद्भवांस्तु । त्रिदिनं कानिकः स्विनः शुद्धः स्याद्विषतिन्दकः एतद्धि चूर्ण बलमांसकारि कुचलेको ३ दिन तक कांजीमें स्वेदित करनेसे
ओजस्करं रोगगणापहारि ॥ वह शुद्ध हो जाता है।
कुठेरक ( छोटे पत्तेकी तुलसी ), आमला, ( जब कुचला फूल जाए तो उसके ऊपरका |
अजवायन, हरें, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, छिलका तथा अन्दरकी पत्ती निकाल देनी चाहिये।)
पीपल, बैंगन, मजीठ, बासा, नीमकी छाल, कूठ,
इन्द्रजौ, बायबिडंग, समन्दर फलके बीज, दारुहल्दी, (९५१४) कुठेरका चूर्णम्
धमासा, कुटकी, दूबघास, बच, अतीस, गिलोय, ( ग. नि. । परि. चा.) चिरायता और गजपीपल; इनका चर्ण १-१ भाग, छठेरकचामळकी यवानी
सेंधा नमक २ भाग, लोह भस्म ३ भाग एवं फल त्रिकं चैव कटुत्रिकं च। त्रिफला ( हर, बहेड़े, आमले ) का चूर्ण ४ भाग न्ताकगण्डीरवृपं सनिम्ब
लेकर सबको एकत्र मिलाकर घृतभावित पात्र में कुष्ठ तथा घेन्द्रयया विडम् ॥ सुरक्षित रक्खें ।
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