Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
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अथ खकारादिगुटिकाप्रकरणम् (९५७३) खदिरादिगुटिका बहेड़ा, हर्र असला, इन्द्रजौ, सोंठ, काली
( यो. चि. म. । अ. ३) मिर्च, पीपल, इलायची, काकड़ासिंगी, कपूर, पीपलाविभीतकीरीतक्यौ धात्री कटफलानि च। मूल, लौंग और कचूर; इनका चूर्ण १-१ भाग शुण्ठीमरीचपिप्पल्या एला कर्कटमाङ्गका ॥
तथा कत्था सबके बराबर लेकर एकत्र मिलाकर कपूर पिप्पलीमूलं सब सठिसंयुतम् । अदरक के रस और किंकरी ( कंटाई या बबूर ) एतानि समभागानि सूक्ष्मचूर्ण तु कारयेत ॥ के काथकी ( ३-३ या ७-७) भावना देकर खदिरं च समं देयं आर्द्रकद्रवभावना। छोटे बेरके समान गोलियां बना लें। भावयेकिङ्करीक्वाथैः वटिका कोलमात्रका ॥ । इन्हें खानेसे कास, कण्ठस्थित कफ, दारुण कासं कण्ठे कर्फ हन्ति स्वरभङ्गं च दारुणम् । स्वर भंग और क्षयका शीघ्र हो नाश हो जाता है। उधसं च निहन्त्याशु क्षयरोगहरं परम् ॥
इति खकारादिगुटिकाप्रकरणम्
अथ खकाराद्यवलेहप्रकरणम् खण्डकुष्माण्ड:
४० तोले सोंठ के चूर्ण को २॥ सेर धीमें (र. रा. सु. । रक्तपित्ता.) भून कर उसमें ४ सेर दूध और ३ सेर १० तोले कुष्माण्डखण्ड देखिये
खांड मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें। जब अवलेह (९५७४) खण्डशुण्ठिः तैयार हो जाय तो उसमें ५-५ तोळे सोंठ, मिर्च,
( भा. प्र. । आमवाता.) पीपल, दालचीनी, इलायची और तेजपात; इनका नागरस्य पलान्यष्ट घृतस्य पलविंशतिम् । चूर्ण मिला दें। सोरं द्विपस्यसंयुक्तं खण्डस्याः शतं पचेत् ।। । इसे सेवन करनेसे आमवात एवं बलि पलित व्योपत्रिजातकद्रव्यात्मत्येकं च पलं पलम् ।। का नाश होता और बल, पुष्टि, आयु तथा ओजकी निदध्याच्चूर्णितं तत्र खादेदग्निवलं प्रति ॥ वृद्धि होती है । आमवातप्रशमनं बलपुष्टिविवर्द्धनम् ।
(मात्रा-२-२॥ तोले ।) बल्यमायुष्यमोजस्य बलीपलितनाशनम् ॥
खण्डशुण्ठथवलेहः आमवातपशमनं सौभाग्यकरमुत्तमम् ।। रस प्रकरण में देखिये
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