Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ ककारादि अथ ककारादिमिश्रप्रकरणम् (९५३०) ककुभत्वचादियोगः वस्त्रवर्ति बुधस्तेन समालिप्य समन्ततः । (बृ. मा. । राजयक्ष्मा.)
गुदे विनिःक्षिपेयत्नात् प्रातः सायं च बुद्धिमान्
घेदना च भवेत्तीवा वहिना स्वेदयेद्गुदम् । ककुभत्वङ्नागबलावानरि
नोपशाम्येधदा सेन तदा चैबोष्णपारिणि ॥ बीजानि चूर्णितं पयसि ।
विनिवेश्य गुदं तिष्ठेद्वेदनाशमकारणात् । पक्वं मधुघृतयुक्तं ससितं यक्ष्मादिकासहरम् ||
अघावष्यमथानं च शिशिरं जलमापिषेत् ॥ ___ अर्जुनकी छाल, नागबला ( गंगेरन ) और
गुदजानां विनाशाय सप्ताहं तु समाहितः । कौंचके बीज समान भाग लेकर चूर्ण बनावें तथा
विधिमेन प्रकुर्वीत गतशङ्कस्तु मानवः ॥ उसे दूध में पकाकर उसमें शहद, घी और खांड
कड़वी तूंबी का चूर्ण, दन्तीमूलका चूर्ण, मिलाकर सेवन करें।
मुरगेकी विष्ठा, मूसली, असगन्ध और चीतामूल; इसके सेवन से राजयक्ष्मा और कासादि का | इनके समान भाग मिलित चूर्णको आकके या स्नुही नाश होता है।
(सेहुंड-थूहर) के दूधकी भावना दें। तदनन्तर (९५३१) कोणीमूलयोगः उसे पानीके साथ बारीक पीस कर उसमें कपड़ेकी (ग. नि. । नाडीव्रणा. ७)
बत्ती भिगो कर अर्श वाले रोगीकी गुदामें लगा दें। या कहुणीमूलसमीपकाण्ड
जब तीब्र वेदना हो तो गुदाको अग्निसे सेकें। मन्नाति नित्यं पुरुषोऽभियुक्तः।
यदि इससे पीड़ा शान्त न हो तो रोगीको गरम नाडीव्रणो रोहति तस्य
पानी में बिठलावें। शीघ्रमनारतप्रसुतसान्द्रपूयः ।।
___ इस प्रकार प्रातः सायं १ सप्ताह तक उपचार
करनेसे अर्शरोग अवश्य नष्ट हो जाता है, इसमें नित्य प्रति मालकंगनी की जड़के समीपका |
सन्देह न करना चाहिये। कांड खानेसे वह नाड़ी ब्रण कि जिससे गाढ़ा गाढ़ा
। इस प्रयोगके दिनों में वृष्य अन्न खाना और पीप निकलता हो शीघ्र नष्ट हो जाता है ।
शीतल जल पीना चाहिये । (९५३२) कटुतुम्याचा वतिः
(९५३३) कटवलान्याचा वतिः (ग. नि. । अशों. ४)
(रा. मा. । अर्शों. १८) कद्धतुम्यास्तथा दन्त्याः शकृतः कुक्कुटस्य च ।। कटवलासुरनाथवारुणी मुशस्याश्चाश्वगन्धायाचित्रकस्य च यवतः ॥ जालिनीफलरजोगुडैः कृता । मस्तुल्यैः कृतं चूर्णमर्कक्षीरेण भावयेत् । पर्तिराशु विनिहन्तिदेहिनां स्नुहीक्षीरेण वा सम्यग्बारिणा परिपेषयेत् ॥ पायुमध्यनिहिताऽशंसां चयम् ॥
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