Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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नस्यप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
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अथ ककारादिनस्यप्रकरणम् (९४५३) कटुतुम्बिमूलनस्यम्
| यह नस्य समस्त शिरोरोगोंमें शिरोविरेचन (रा. मा. । मुख रोगा. ५)
कराने के लिये उपयोगी है। संपेषितः पर्युषितोदकेन
(९४५६) कर्कोटमूलादिनस्यम् पटान्तनिश्चोतननिर्मलश्च ।
( व. से. । पाण्ड्वा ) घ्राणोद्भवा सि निहन्ति
नस्यं कर्कोटमूलस्य प्रेयं वा जालिनीफलम् । सद्यो नस्येन कन्दः कटुवम्बिकायाः॥ गुडूचीपत्रकल्कं वा पिबेत्तक्रेण कामली ॥
कडवी तंबीकी जड को बासी पानी में पीस | भक्तं तक्रेण भुञ्जीत स जहात्याशु कामलाम् ॥ कर कपड़े में लपेट कर निचोड़ें । इस प्रकार
कामला रोगमें ककोड़े की जड़ के चूर्ण की निकाले हुवे स्वच्छ रस की नस्य लेनेसे नाक के
या कड़वी तोरी के चूर्णकी नस्य देनी और गिलोय भीतर की अर्श ( मस्सों ) का शीघ्र ही नाश हो । के पत्तों को तक्र के साथ पीस कर उसी में मिला जाता है।
कर पिलाना चाहिये। (९४५४) कपित्थपत्रयोगः
पथ्य-तक भात । ( वै. म. र. । पटल ३)
इस उपचार से कामला रोग शीघ्र नष्ट हो फपित्यपत्राणि विदितानि
जाता है। हिकामु जिघेदयवाऽर्कतप्तम् ॥ कैथ के पत्तों को पीस कर ( रस निकाल
(९४५७) काकोदुम्बरियोगः कर उसे ) धूप में गर्म कर के सूंघने से हिक्का का (व. से. । वातव्या ) नाश होता है।
काकोदुम्बरिदुग्धैः सराम?हेरेत्सर्वयोगविश्च । (९४५५) करञ्जादिनस्यम् कपिकच्छुमूलयुक्तैर्नस्यैरपबाहुजां पीडाम् ॥ .
( व. से. शिरोरोगा.) ___कठूमरके दूधमें हींग और कौंचकी जड़का करअशिग्रुबीजानि पत्रकं शर्करा वचा।
चूर्ण मिलाकर उसकी नस्य देने से "अपबाहुक" सर्वेषां शीर्षरोगाणामेतच्छीर्षविरेचनम् ॥ | नामक वातव्याघि नष्ट हो जाती है। ____ करा ( कञ्ज ) के बीजोंकी मींगी, सहजने ।
(९४५८) कार्पासमजादिनस्यम् के बीज, तेजपात, खांड और बचः सबके समान ! (ग. नि. । शिरोरोगा. १; वा. भ. । उ. अ. २४) भाग मिलित चूर्णको एकत्र मिला कर खरल कार्पासमज्जात्वङ्मस्तं सुमनःकोरकाणि च । कर लें।
नस्यमुष्णाम्बुपिष्टानि सर्वमूर्धरुजापहम् ।।
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