Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 624
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् परिशिष्ट ६०५ शुद्ध पारदको १५ दिन सेंभलकी जड़के | भस्म ) समान भाग लेकर सबको देवदाली (बिंडाल) रसमें खरल करें । इसी प्रकार शुद्ध गंधक को भी के रसमें खरल करके आतशी शोशो में भर कर २१ दिन सेंभलकी जड़के रसमें खरल करें। (१ दिन ) बालुका यन्त्र में पकायें और फिर तत्पश्चात् दोनोंको एकत्र मिलाकर ४ पहर घी में उसके स्वांग शीतल होने पर रसको निकालकर खरल करें और फिर सबका एक गोला बनाकर उसमें १-१ भाग गिलोय, नीलोत्पल और कमलउसे कपड़ेमें लपेटकर २ पहर घीमें पकावें । तद- कन्द का चूर्ण तथा पत्थर पर पिसी हुई द्राक्षा नन्तर उसे ३ दिन पुनः संभलकी जड़के रसमें (मुनक्का ) मिलाकर मुलैठीके रसमें खरल करके खरल करके आतशी शीशीमें भर दें और उसमें सुखाकर रक्खें । सेंभलकी जड़का रस डालकर बालुका यन्त्रमें रख इसे शहद और मिश्रीके साथ सेवन करनेसे कर एक दिन पाक कर तथा उसके स्वांग शीतल कामला रोग नष्ट होता है । (मात्रा-२ रत्ती ।) होने पर औषधको निकाल लें। शीशी में रस इतना डालना चाहिये कि १ दिन पाक करने के (९४९३) कामवाणो रसः पश्चात् भी औषध कुछ आई ही निकले । (वृ. यो. त. । त. १४७) मात्रा–१ निष्क ( ३॥ माशे )। सतेन्द्रामृतमधिशोषसुमनाजातीफलाकल्करा इसे मिश्रीके साथ मिला कर सेवन करनेसे फेनाश्वाहजवाहदेवकुसुमं कर्पूरकस्तूरिकाम् । कामशक्ति अत्यधिक प्रबल हो जाती है। पिष्ट्वा तत्समभागिकं मुनि अनुपान-औषध खानेके पश्चात् समान । मितैः कृष्णाहिवल्लीरसैभाग मिलित मूसली का चूर्ण और खांड ५ तोलेकी र्भाव्य पक्वफले निधाय मात्रानुसार दूधके साथ पीना चाहिये । सजले तन्नारिकेलोदरे॥ (९४९२) कामलाप्रणुद्रसः क्षीरद्रोणयुगे विपाच्य विधिवत्तज्जीर्णदुग्धं हरे(र. र. स. । उ. अ. १९; र. चं.। पाण्डवा.) सूक्ष्मं स्वर्णयुतं विधाय तीक्ष्णमाक्षिककान्ताभ्रशुल्बसूतकतालकम् । पयसा वल्लत्रयं सेवयेत् । देवदालीरसे पिष्टं वालुकायन्त्रमूर्छितम् ।। ताम्बूलेन समं निशासु अमृतोत्पलकल्हारकन्दद्राक्षासमन्वितम् । समये कामानिसन्दीपनं पिष्टं यष्टयम्भसा क्षौद्रसिताभ्यां कामलापणुत् ।। षण्ढोऽपि प्रमदां विजित्य ___ तीक्ष्ण लोह भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, कान्त- तनुते कान्ति तनोति स्त्रियाः ॥ लोह भस्म, अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म, पारद भस्म ! बुद्धि चातिबलं ददाति नितरां युक्त्यानुपानरयं । ( या रससिन्दूर ) और शुद्ध हरताल ( या हरताउ । वृद्धानां मदनोदयं वितनुते स्यात्कामवाणो रसः॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700