Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 626
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्मप्रकरणम् ] परिशिष्ट ६०७ (खांड सबके बराबर लेनी चाहिये । मात्रा- ज्येष्ठी नागवला कचूरमदनं जातीफलं सैन्धवम् १ माशा ।) | भाजी कर्कटभृङ्गिका त्रिकटुकं जीरद्वयं चित्रकम् । यह अत्यन्त आनन्दवर्धक, अग्निदीपक और चातुर्जातपुनर्नवागजकणाद्राक्षासमं वासकम् ।। उत्साह वर्द्धक है तथा ओज, पुष्टि और बलवीर्यकी बीजं मर्कटिशाल्मली. वृद्धि करता है। इसके सेवनसे वातज, पित्तज त्रिफलकं चूर्ण समं कल्पयेत् । और कफज अनेक रोग नष्ट होते और बलि पलित कर्षार्दा गुटिकावलेहमथवा सेव्यं सदा सर्वथा ॥ रहित सुखायु व्यतीत होती है। | पेयं क्षीरसिता तु वीर्यकरणं स्तम्भोध्ययं कामिनी (९४९५) कामेश्वररसः (१) रामावश्यकरं सुखातिमुखदं प्रौढाङ्गनादायकम् ।। क्षीणे पुष्टिकरं क्षये क्षयहरं सर्वामयध्वंसनम् । (र. चं. ; वै. र. ; यो. र. । वाजीकरणा. ; कासश्वासमहातिसारशमनं मन्दाग्निसन्दीपनम् ॥ न. मृ. । त. ५) धातोर्टद्धिकरं रसायनवरं नास्त्यन्यदस्मात्परम् जातीफलं च सौराष्ट्रो कृष्णधत्तूरबीजकम् । अर्शासि ग्रहणीप्रमेहनिचयश्लेष्मातिरक्तप्रणुत् ।। जातीपुष्पमफेनं च नागं हिलमेव च ॥ नित्यानन्दकरं विशेषविदुषां वाचां विलासोद्भव एतानि समभागानि खसक्वाथेन मदयेत् । मभ्यासेन निहन्ति मृत्यु गमामाचा च वटिका सितया सह भक्षयेत् ॥ पलितं कामेश्वरो वत्सरात् ॥ नाम्ना कामेश्वरः प्रोक्तो रमते कामिनीशतम् ॥ सर्वेषां हितकारको निगदिता श्रीवैद्यनाथेन यः जायफल, फिटकरी, काले धतूरेके बीज, चमेलीके फूल, अफीम, सीसा भस्म और शुद्ध भली भांति भस्म किया हुवा अभ्रक, कंकोल, हिंगुल समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर | कूर, असगन्ध, गिलोय, मेथी, मोचरस, बिदारीकन्द, खसके क्वाथ में घोट कर १-१ रत्तीकी मूसली, गोखरु, तालमखाना, केलेका कन्द, शतावर, गोलियां बना लें। अजमोद, उड़द, तिल, धनिया, मुलैठी, गंगेरन, इन्हें खांडके साथ सेवन करनेसे कामशक्ति कचूर, धतूरा, जायफल, सेंधा नमक, भरंगी, काकड़ाअत्यधिक ढ़ जाती है। सिंगी, सोंठ, मिर्च, पीपल, सफेद जीरा, काला जीरा, (९५९६) कामेश्वररसः (२) चीतामूल, दालचीनी, इलायची, तेजपात, नाग केसरे, पुनर्नवा ( साठ ) की जड़, गजपीपल, द्राक्षा ( र. म. ; . यो. त. । त. १४७) (किशमिश ), बासा (अडूसा) की जड़की छाल, सम्यमारितमभ्रकं कटुफलं कुष्ठाश्वगन्धामृता। कौं चके छिलके रहित बीज, संभलकी मूसली, हर', मेथी मोचरसो विदारिमुशली गोरकं रकम् | बहेड़ा और आमला; समान भाग लेकर चूर्ण रम्भाफन्दशतावरी खजमुदा बनावें । ( इसे सबके बराबर खांडकी चाशनी में माषास्तिला धान्य म्। मिलाकर गोलियां बनालें या अवलेह ही रहने दें।) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700