Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ ककारादि
भाण्डे रुद्भवा क्षिपेन्मासं धान्यराशावथोद्धरेत्। (९४११) कासमर्दमूललेपः अनेन लेपयेच्छीर्ष नस्यं कुर्यादनेन वै ॥
(ग. नि. । कुष्टा. ३६) व्यहाद्ममरसंकाशाः केशाः स्युर्वत्सरार्धकम् ।। | कासमर्दकजं मूलं सौवीरेण तु पेषितम् । __ कान्तपाषाण का चूर्ण, तेल, शहद, घी | द्रुकिटिभकुष्ठानि जयेदेतत्प्रलेपनात् ॥ और काकतुण्डी ( चौंटली ) के फलोंका चूर्ण समान कासमर्द ( कसौंदी ) की जड़को कांजीमें भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर पात्रमें बन्द करके | पीसकर लेप करनेसे दद्र और किटिभ कुष्ठ का अनाजके ढेरमें दबा दें। एक मास पश्चात् निकाल | नाश होता है। कर इसका बालों पर लेप करें और इसीकी नस्य लें। (९४१२) कासम दिलेपः इससे ३ दिनमें ही ( सफेद ) बाल भौं रेके
( वै. म. र. । पट. ११) समान काले हो जाते हैं और छः मास तक वैसे
जम्बीरस्वरसे पिष्टकासमाज्रिलेपनम् । ही रहते हैं।
विचर्चिकानां सर्वेषां परमौषधमुच्यते ॥ - (९४०९) कारवेल्लीजटायोगः ___कसौंदीकी जड़को जम्बीरी नीबूके रसमें
( रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०) पीसकर लेप करनेसे विचर्चिका (तर खुजली ) का योनिः स्त्रीणां निर्गताऽपिप्रवेश नाश होता है । यह इस रोगकी परमौषध है।
मामोत्यन्तः कारवेल्लीजटाभिः। (९४१३) कुमारिकादिलेपः सम्पिष्टाभिर्लेपनाद्................
(र. र. 1 उपदंशा.)
कुमारीरससम्पिष्टं जीरक लेपनादुजम् । यदि स्त्रीको योनि बाहर निकल आई हो तो तेन दाहश्च पाकश्च शान्तिमानोति निश्चितम् करेलीकी जड़को पीसकर लेप करनेसे वह भीतर |
कर लेप करनेसे वह भीतर कुमारी (ग्वार पाठा ) के रसमें जीरेको प्रविष्ट हो जाती है।
पीसकर लेप करनेसे उपदंश के व्रणों की पीड़ा, (९४१०) कार्पासपत्रलेपः दाह और पाकका अवश्य नाश हो जाता है। (यो. त. । त. ७८ )
(९४१४) कुमारीमूलयोगः कासपत्रैः सम्पिष्टैः साज्यैलेंपो विषापहः । ( रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०) वृश्चिकस्याथवा वत्सनाभलेपः प्रशस्यते ॥ । अपत्यनाशप्रभवां निहन्ति ___ कपासके पत्तोंको पीसकर घीमें मिला कर स्तनव्यथामाशु कृते प्रलेपे । लेप करनेसे या बछनाग को पानीके साथ पीस कर स्त्रीणां हरिद्रासहितं कुमारी लेप करनेसे बिच्छूका विष नष्ट हो जाता है। मूलंविशालामभवं कदाचित् ॥
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