Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
(९१५८) कार्पासादितैलम् (वै. म. र. 1 पट. ११ ) मूलत्वक्पत्रपुष्पाणां कार्पासस्य रसे शृतम् । तैलं कपालजान् कुष्ठान् जयेत्तक्राम्लसाधितम् ॥
कपास की जड़, छाल, पत्र और पुष्पका स्वरस (या क्वाथ) २ सेर, खट्टा तक (छाछ) २ सेर तथा तेल १ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें और जब तेलमात्र शेष रह जाए तो उसे छान लें।
यह तैल शिरके कुटको नष्ट करता है । (९३५९) कालानुसार्यादितैलम्
(सु. सं. । चि. अ. २ व्रणा. ) कालानुसायला जातीचन्दनपद्मकैः । शिलादार्व्यमृतातुत्थैस्तैलं कुर्बति रोपणम् ॥
कल्क —— तगर, अगर, इलायची, चमेलीके पत्ते, सफेद चन्दन, पद्माक, शिलाजीत, दारूहल्दी, गिलोय और नीलाथोथा समान भाग मिलित तोले लेकर पानी के साथ बारीक पीस लें ।
१ सेर तेलमें यह कल्क और ४ सेर पानी मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको ले
छान
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यह तेल लगाने से घाव भर जाते हैं । (९३६०) कासीसादितैलम्
( र. चि. म. । स्त. ९ ) कासीसं हरिताळं च सैन्धवं हयमारकः । विडङ्गं पूतिकं चैव धनं जम्बुश्च दन्तिका ॥ चित्रकार्कस्नुहीदुग्धं तैलं पक्वं समैश्च तैः अभ्यञ्जनेन तत्सद्यश्चाशांसि शातयेद्ध्रुवम
[ ककारादि
कल्क --- कसीस, हरताल, सेंधा नमक, कनेरकी जड़, बायबिडंग, पूतिकरञ्ज, मोथा, जामनकी छाल, दन्तीमूल, चीतामूल, आकका दूध और थूहर का दूध समान भाग मिलित १० तोले लेकर पानी के साथ बारीक पीस लें ।
१ सेर तेलमें यह कल्क और ४ सेर पानी मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें।
इसे लगाने से अर्शके मस्से गिर जाते हैं। (९३६१) कासीसा तैलम् (१) ( वृ. यो. त. । त. १४३ ; वृ. मा. स्त्रीरोगा. ; यो. चि. म. । अ. ६ ; स्त्री. भै. र. । खी. )
व. से. ।
च. द. ।
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कासीसतुरगगन्धासावरेगजपिप्पलीविपक्वेन । तैलेन यान्ति वृद्धिं स्तनकर्णवराङ्गलिङ्गानि ॥
कल्क – कसीस, असगंध, लोध ( पाठान्तर के अनुसार सारिवा) और गजपीपल समान भाग मिलित १० तोले लेकर पानीके साथ पीस लें ।
१ सेर तेलमें यह कल्क और ४ सेर पानी मिलाकर पकायें | जब पानी जल जाए तो तेलको छान ले 1
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इसकी मालिश से स्तन, कान, भग और लिंग बड़े होते हैं ।
(९३६२) कासीसायं तैलम् (२) (वं. से. । अर्शो ; ग. नि. । परिशि. तैला. ) काशीसदन्तीसिन्धूत्थ करवीरानलैः पचेत् । तैलमर्क पयोन्मिश्रमभ्यङ्गात्पायुकी लजित् ॥ १ च. द. में 'शारिवा' पाठ है ।
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