Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णपकरणम् ]
परिशिष्ट
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सफेद कमलकी केसरको चावलोंके धोवनके करंज के बीज, सोंठ और बच समान भाग साथ पीसकर उसमें खांड और शहद मिलाकर सेवन लेकर चूर्ण बनावें । इसे करञ्जके क्वाथके साथ करनेसे प्रवाहिका शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। पीसकर प्रातःकाल पीनेसे अन्तर्विदधि नष्ट (मात्रा-१ माशा ।)
हो जाती है। (९२४०) कम्पिल्लकादियोगः
(मात्रा-२ माशे ।) ( ग. नि. । गुल्मा. २५) कम्पिल्लकं हरीतक्यो बिडं शिग्रुफलानि च ।
(९२४३) करञ्जमूलयोगः श्यामां वचामश्वमूत्री विडङ्गान्यम्लवेतसम् ।।
(ग. नि. । अशों. ४) यवक्षारं यवानी तु पिबेदुष्णेन वारिणा। तक्रभुङ्नक्तमालस्य गोमूत्रपरिपेषितम् । एतद्धि गुल्मनिचयं सशूलं सपरिग्रहम् ।। अर्शसां नाशनं मूलमापिबेदिवसत्रयम् ।। भिन्नत्ति सप्तरात्रेण वायुर्वृद्धो यथा घनान् ।
___ करनकी जड़को गोमूत्र में पीसकर पीने और ___कमीला, हर्र, बिड लवण, सहजनेकी फली,
केवल तक पर रहने से ३ दिनमें अर्श रोग नष्ट निसोत (काली), बच, शल्लकी (सलई), बायबिडंग,
हो जाता है। अम्लवेत, जवाखार और अजवायन समान भाग लेकर चूर्ण बनावें।
(मात्रा-२ माशे।) इसे उण्णा जलके साथ सेवन करनेसे शूल
(९२४५) करादिचूर्णम् और उपद्रवयुक्त गुल्म सात दिनमें नष्ट हो जाता है।
( यो. र. । वातशुला. ; वृ. यो. त. । त. ( मात्रा-१॥-२ माशे।)
___९४; वै. र. । शूला.) . (९२४१) कम्पिल्लकाद्यो योगः
करनसौवर्चल'नागराणां (ग. नि. | कृम्य. ६ ; यो. चि. म. । अ. २) कम्पिल्लको हरीतक्यः क्षारः सैन्धवमेव च । ।
सरामठानां समभागिकानाम् । पिष्टं तक्रेण पातव्यं नित्यं कृमिविनाशनम् ।।
| चूर्ण कदुष्णेन जलेन पीतं कमीला, हर, जवाखार और सेंधा नमक समीरशूलं विनिहन्ति सद्यः॥ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
___ करअ बीज, संचल ( काला नमक ), सोंठ इसे तकमें पीसकर पीने से कृमिरोग नष्ट होताहै। और हींग समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । ( मात्रा-३ माशा ।)
इसे मन्दोष्ण जल के साथ सेवन करने से (९२४२) करञ्जबीजयोगः ।
| वातजशूल नष्ट होता है। (वै. म. र. । पटल ८)
(मात्रा-४ रत्तोसे १ माशा तक ।) करनबीजविश्वोग्राः करअक्वाथपेषिताः।। पीताः प्रभाते निःशेषं प्रत्याभ्यन्तरविद्रधिम् ।। १ वैद्य रहस्यमें सौर्वचलकी जगह सुहागा है।
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