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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णपकरणम् ] परिशिष्ट ५३७ सफेद कमलकी केसरको चावलोंके धोवनके करंज के बीज, सोंठ और बच समान भाग साथ पीसकर उसमें खांड और शहद मिलाकर सेवन लेकर चूर्ण बनावें । इसे करञ्जके क्वाथके साथ करनेसे प्रवाहिका शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। पीसकर प्रातःकाल पीनेसे अन्तर्विदधि नष्ट (मात्रा-१ माशा ।) हो जाती है। (९२४०) कम्पिल्लकादियोगः (मात्रा-२ माशे ।) ( ग. नि. । गुल्मा. २५) कम्पिल्लकं हरीतक्यो बिडं शिग्रुफलानि च । (९२४३) करञ्जमूलयोगः श्यामां वचामश्वमूत्री विडङ्गान्यम्लवेतसम् ।। (ग. नि. । अशों. ४) यवक्षारं यवानी तु पिबेदुष्णेन वारिणा। तक्रभुङ्नक्तमालस्य गोमूत्रपरिपेषितम् । एतद्धि गुल्मनिचयं सशूलं सपरिग्रहम् ।। अर्शसां नाशनं मूलमापिबेदिवसत्रयम् ।। भिन्नत्ति सप्तरात्रेण वायुर्वृद्धो यथा घनान् । ___ करनकी जड़को गोमूत्र में पीसकर पीने और ___कमीला, हर्र, बिड लवण, सहजनेकी फली, केवल तक पर रहने से ३ दिनमें अर्श रोग नष्ट निसोत (काली), बच, शल्लकी (सलई), बायबिडंग, हो जाता है। अम्लवेत, जवाखार और अजवायन समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। (मात्रा-२ माशे।) इसे उण्णा जलके साथ सेवन करनेसे शूल (९२४५) करादिचूर्णम् और उपद्रवयुक्त गुल्म सात दिनमें नष्ट हो जाता है। ( यो. र. । वातशुला. ; वृ. यो. त. । त. ( मात्रा-१॥-२ माशे।) ___९४; वै. र. । शूला.) . (९२४१) कम्पिल्लकाद्यो योगः करनसौवर्चल'नागराणां (ग. नि. | कृम्य. ६ ; यो. चि. म. । अ. २) कम्पिल्लको हरीतक्यः क्षारः सैन्धवमेव च । । सरामठानां समभागिकानाम् । पिष्टं तक्रेण पातव्यं नित्यं कृमिविनाशनम् ।। | चूर्ण कदुष्णेन जलेन पीतं कमीला, हर, जवाखार और सेंधा नमक समीरशूलं विनिहन्ति सद्यः॥ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । ___ करअ बीज, संचल ( काला नमक ), सोंठ इसे तकमें पीसकर पीने से कृमिरोग नष्ट होताहै। और हींग समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । ( मात्रा-३ माशा ।) इसे मन्दोष्ण जल के साथ सेवन करने से (९२४२) करञ्जबीजयोगः । | वातजशूल नष्ट होता है। (वै. म. र. । पटल ८) (मात्रा-४ रत्तोसे १ माशा तक ।) करनबीजविश्वोग्राः करअक्वाथपेषिताः।। पीताः प्रभाते निःशेषं प्रत्याभ्यन्तरविद्रधिम् ।। १ वैद्य रहस्यमें सौर्वचलकी जगह सुहागा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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