Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अवलेहप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
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इसके सेवन से पांच प्रकारकी खांसी, वेदना (९३१७) कोलमज्जादिलेहः करनेवाली हिचकी, घोर स्वरभंग, कण्ठ रोग, मुख-
(वृ. मा. । छर्घ.) रोग, अग्निमांद्य और प्रतिश्याय का नाश होता है। यह अवलेह स्वरभंगमें विशेष उपयोगी है।
कोलमज्जाकणाधात्री, लाजाविश्वफलत्रिकम् । (मात्रा-६ माशे।)
श्यामाअनाब्दकोलास्थि
माक्षिकाविसितायुतम् ॥ कुलित्थगुडः (वृहद्
कणोषणकपित्थाम्बु, त्वगेलापत्रक समम् । (व. से. । कासा.)
सक्षौद्राः पादिका लेहाः षडेते छर्दिनाशनाः । प्र. सं. ६७१८ "वृहत्कुलस्थगुडः" देखिये । |
(१) बेरको गुठलीकी गिरी, पीपल और (९३१६) कृष्णादियोगः
आमला: (२) धानको खील, सोंठ, हर्र, बहेड़ा ( यो. र. । यक्ष्मा. ; वृ. मा. । राजयक्ष्मा.) और आमला; (३) फूल प्रियंगु, सुरमा, नागरमोथा, कृष्णाद्राक्षासितालेहः क्षये वा क्षौद्रतैलवान् । बेरकी गुठली को गिरी ( मांगी); (४) मक्खीकी मधुसपिर्युतो वाऽश्वगन्धाकृष्णासितोद्भवः ॥ विष्टा और मिसरी; (५) पीपल, काली मिर्च, कथ
पीपल, मुनक्का और मिसरीको पीसकर शहद | और सुगन्धवाला तथा (६) दालचीनी, इलाथषी और तेल में मिलाकर सेवन करानेसे या असगन्ध, और तेजपात; ये छः प्रयोग छर्दिको मष्ट करते हैं। पीपल और मिसरी को पीसकर शहद और घी में | हर एक प्रयोग की ओषधियोंका समान भाग मिलाकर सेवन करानेसे क्षय रोग का नाश होता है। मिलित चूर्ण शहदमें मिलाकर चाटना चाहिये।
इसि ककाराधवलेहमकरणम्
अथ ककारादिघृतप्रकरणम् (९३१८) कण्टकारीपतम् श्वासाग्निसादस्वरभेदभिन्ना(ग. नि. । धृता. १)
निहन्त्युदीर्णानपि पञ्चकासान् ।। पाठविडव्योषविडङ्गसैन्धव
__ कल्क-पाठा, बिड लवण, सोंठ, काली त्रिकण्टरास्नाहुतभुग्बलाभिः। मिर्च, पीपल, बायबिडंग, सेंधा नमक, गोखरु, रास्ना, ही वचाम्भोधर देवदारु
चीतामूल, खरैटी, काकड़ा सिंगी, बच, नागरमोथा, दुरालभा भार्यभया शठीभिः ॥ देवदारु, धमासा, भरंगी, हर्र और कचूर समान सम्यग्विपक्वं द्विगुणेन सपि
भाग मिलित १० तोले लेकर पानीके साथ निदग्धिकायाः स्वरसेन चैतत् । बारीक पीस लें।
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