Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ ओकारादि
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शहद
तुलसी
मुख्य ओषधि प्रतिनिधि
मुख्य ओषधि प्रतिनिधि लाल चन्दन नवीन खस
भिलावा
चीता सुगंधित और निर्गध। । एकके अभावमें
नल लालचन्दन दूसरा
कुश
काश तीन प्रकारका । (एकके अभावमें दशमूल की कोई। (अप्राप्त वस्तुके समान चन्दन । अन्य प्रकारका
वस्तु न मिले तो गुणवाले वृक्षकी जड़ लें अतीस नागरमोथा
पुराना गुड़ काकड़ासिंगी
मत्स्यण्डिका (राब) खांड नागकेशर कमलकेसर
खांड
सिता ( मिश्री) भिलावा नदी भल्लातक
(राब से खांड और खांडसे मेदा, महामेदा शतावर
मिश्री उत्तम होती है ) जीवक, ऋषभक विदारीकन्द
संभाल काकोली, क्षीरकाकोली असगन्ध
तुलसी
संभालु ऋद्धि, वृद्धि बाराहीकन्द
कुठेरक वाराही कन्द चर्मकारालु
तुलसी
( सफेद तुलसी) (वाराहीकन्दको पश्चिम में
सफेद पुनर्नवा लाल पुनर्नवा गृष्टिकन्द कहते हैं। वाराही
रास्ना
कोलाञ्जन (कुलिंजन) कन्दको जड़ मूलीके समान
स्वर्णमाक्षिक रौप्य माक्षिक और क्षारयुक्त होती है
तारमाक्षिक स्वर्णगैरिक इसके पौधेमें ७ या ८
शुद्ध पारद और। पत्ते होते हैं। काण्ड सफेद
लोहभन्म
स्वर्ण भस्मादि । या लाल होता है एवं
कान्तलोह तीक्ष्ण लोह इसमें प्रति वर्ष एक एक पत्ता
मोती
मोती की सीप आता है । छाल मुख्यतया सफेद होती है। इसका कन्द
वैदूर्यादि रत्न मोती आदिको भन्म श्यामवर्ण खुरदारा और
पारद भस्म
रससिन्दूर वृषणके समान होता है।
रससिन्दूर
हिंगुल इसे ताम्बूलवल्ली, छदना
बकरीका दूध वल्ली और वाराहकुट्टिका भी
गोधृत
बकरीका घृत कहते हैं।)
मूंग या मसूरका यूष इति ओकाराा मिश्रप्रकरणम्
गोदुग्ध
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