Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत
1- भैषज्य रत्नाकरः
(१) पूति करंज, हर्र, कचूर और पोखरमूल; (२) बेलकी छाल, गिलोय, देवदारु और मोंठ, (३) बायबिडंग, पाठा, अतीस और पीपल; ये तीनों क्वाथ आमवातको नष्ट करते हैं ।
(९२०३) करञ्जादिवमनकषायः (१) ( ग. नि. । अजीर्णा. ५ ) I कारञ्जश्च कषायः स्यादथवाऽर्जुनसार्षपः । पीतः कषायो वमनात् सद्यो हन्ति विषूचि - काम् ॥ करञ्ज ( फल ) का अथवा अर्जुनकी छाल और सरसोंका काथ पीने से वमन होकर विषूचिका नष्ट हो जाती है । (९२०४) करञ्जादिवमनकषायः (२) ( ग. नि. । अजीर्णा. ५ )
करवनिम्बशिखरीगृह्रध्यर्जुनवरसकैः । पीतः कषायो बमनाद्घोरां हन्ति विषूचिकाम् ।। करञ्ज ( फल ), नीमकी छाल, अपामार्ग ( चिरचिटा ), गिलोय, अर्जुनकी छाल और इन्द्रजौ समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
इसे पीने से वमन होकर घोर विषृचिका नष्ट हो जाती है ।
(९२०५ ) करञ्जादिस्वरसः ( वृ. मा. । व्रणशोथा. ) करआरिष्टनिर्गुण्डीरसो हन्याद् व्रणक्रिमीन् ॥ करञ्ज, नीम और संभालु, इनके पत्तोंके रस एकत्र मिलाकर व्रण में भरने से ऋणके कृमि नष्ट हो जाते हैं ।
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[ ककारादि
(९२०६) कर्च् रादिक्वाथः ( ग. नि. । ज्वरा. १ ) कर्चूरमार्गी कटुकापटोलीदुरालभा पुष्करमूलमेन्ट्री | व्याघ्री तथा कर्कटङ्गिका च
क्वाथोऽयमुक्तः प्रचुरे त्रिदोषे ॥ कालो ह्येष यमश्चैव नियतिर्मृत्युरेव च । तस्मिन्त्रपगते देहान्मेह पुनरुच्यते ||
कचूर, भरंगी, कुटकी, पटोल, धमासा, पोखरमूल, इन्द्रायणकी जड़, कटेली और काकड़ासिंगी समान भाग लेकर क्वाथ बनायें ।
इसे पिलाने से भयंकर सन्निपात ज्वर भी नष्ट हो जाता है ।
(९२०७) कलिङ्गषट्कः
( ग. नि. । अतिसारा. २; वै. जी. । विलास २ ) 1 विश्वका लङ्गातिविषाब्दबिल्वैः सवालकैरुत्क्वथितः कषायः । सशूलाय सशोणिताय सामाय शस्तोsथ कलिङ्गषट्कः ॥ सोंठ, इन्द्रजौ, अतोस, नागरमोथा, बेलगिरी और सुगन्धवाला समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
तस्मै
इसे पीने से शूल युक्त अतिसार, रक्तातिसार और आमातिसार का नाश होता है ।
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(९२०८) कलिङ्गादिकषायः ( वैद्यामृत. )
कलिङ्गशुण्ठीघनतितविक्ता निम्बामृताधान्यरजोन्त्रितानाम् ।
१ वै. जी. में इन्द्रजौकी जगह कु.ड़ेकी छाल है और सटका अभाव है ।