Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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मिश्रप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
५२१
अण्डीके छिलके रहित बीजोंको धोकर पीसकर । स्थाद्वातरक्तापहमुग्रमेतदा. दूधमें पकाकर खीर बनावें।
थोतनं सद्भिपजो वदन्ति ॥ इसे खानेसे कटिशूल और गृध्रसी का नाश |
अरण्डमूल, अण्डीके बीज और अरण्डकी कोपलें होता है । यह इन रोगोंकी परमौषध है ।
| समान भाग लेकर कूटकर गोदुग्धमें पकाकर छान (९१७९) एरण्डबीजशोधनम्
लें । इसे आंखमें डोलनेसे वातज और रक्तज उग्र ( यो. र.)
| नेत्राभिष्यन्द नष्ट होता है। गन्धर्वहस्तबोजानां नारिकेलोदकेन च । याममात्राद्भवेच्छुद्धिर्दन्तीबीजं पचेद्यथा ।। ____ (९१८१) एलादियोगः अण्डीके बीजों को दोलायन्त्र विधिसे १ पहर
(व. से. । मूत्रकृच्छा. ; वृ. मा. । मूत्रकृछ्रा.) नारियलके पानीमें स्वेदित करनेसे वे शुद्ध होजाते हैं।
इसी प्रकार जमालगोटा भी शुद्ध हो जाता है। एलाहिङ्गयुतं क्षीरं सर्पिमिश्रं पिवेन्नरः । (९१८०) एरण्डमूलाधाइच्योतनम् । मूत्रहृद्रोगशुद्धयर्थ शुक्रदोषहरं परम् ॥ ( ग. नि. । नेत्ररोगा. ३)
दूधमें इलायचीका चूर्ण ( ३ माशे ), हींग एरण्डमूलं सफलपरोह
( १ रत्ती ) और घी (१ तोला) मिलाकर पीनेसे विजर्जरं क्षीरयुतं गवां च । मूत्रकृच्छ, हृद्रोग और शुक्रदोष नष्ट होते हैं।
इति एकारादिमिश्रप्रकरणम्
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