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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] परिशिष्ट ५२१ अण्डीके छिलके रहित बीजोंको धोकर पीसकर । स्थाद्वातरक्तापहमुग्रमेतदा. दूधमें पकाकर खीर बनावें। थोतनं सद्भिपजो वदन्ति ॥ इसे खानेसे कटिशूल और गृध्रसी का नाश | अरण्डमूल, अण्डीके बीज और अरण्डकी कोपलें होता है । यह इन रोगोंकी परमौषध है । | समान भाग लेकर कूटकर गोदुग्धमें पकाकर छान (९१७९) एरण्डबीजशोधनम् लें । इसे आंखमें डोलनेसे वातज और रक्तज उग्र ( यो. र.) | नेत्राभिष्यन्द नष्ट होता है। गन्धर्वहस्तबोजानां नारिकेलोदकेन च । याममात्राद्भवेच्छुद्धिर्दन्तीबीजं पचेद्यथा ।। ____ (९१८१) एलादियोगः अण्डीके बीजों को दोलायन्त्र विधिसे १ पहर (व. से. । मूत्रकृच्छा. ; वृ. मा. । मूत्रकृछ्रा.) नारियलके पानीमें स्वेदित करनेसे वे शुद्ध होजाते हैं। इसी प्रकार जमालगोटा भी शुद्ध हो जाता है। एलाहिङ्गयुतं क्षीरं सर्पिमिश्रं पिवेन्नरः । (९१८०) एरण्डमूलाधाइच्योतनम् । मूत्रहृद्रोगशुद्धयर्थ शुक्रदोषहरं परम् ॥ ( ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) दूधमें इलायचीका चूर्ण ( ३ माशे ), हींग एरण्डमूलं सफलपरोह ( १ रत्ती ) और घी (१ तोला) मिलाकर पीनेसे विजर्जरं क्षीरयुतं गवां च । मूत्रकृच्छ, हृद्रोग और शुक्रदोष नष्ट होते हैं। इति एकारादिमिश्रप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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