Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ आकारादि
(९०४८) आम्रवल्कलकल्कलेपः लेकर सबको कान्तलोहके पात्रमें १ मास तक ( भै. र. । वरातिसारा.)
नीमके तेल में घोटें । आम्रस्य वल्कलं पिष्टं काचिकेन प्रयत्नतः ।
इसका लेप करनेसे बाल काले हो जाते हैं। नाभि संलेपयेत्तेन कल्केन मतिमान् भिषग् ॥ (९०५०) आरग्वधादिलेपः नदीवेगोपमं घोरमतीसारं निवारयेत् ॥
(३. मा. । विसर्पा.) (ताजे ) आमलेको कांजीके साथ बारीक | आरग्वधस्य पत्राणि त्वचः श्लेष्मातकोद्भवाः । पीसकर उसका नाभिके ऊपर लेप करनेसे नदीके शिरीषपुष्पं काफमाची हिता लेपावचूर्णितः ।। वेगके समान घोर अतिसार भी नष्ट हो जाता है। अमलतासके पत्ते, लिहसोड़े की छाल, सिर
(९०४९) आम्रास्थ्यादियोगः । सके फूल और काकमाची समान भाग लेकर चूर्ण (र. र. रसा. खं. । उप. ५)
बनावें । इसे ( पानीमें पीसकर ) लेप करनेसे
| विसर्प में लाभ पहुंचता है। आम्रास्थि त्रिफला भृकी मियॉर्मातुलुङ्गकम् ।। निशा नीली मृणालानि नागं लोहं च चूर्णितम् ॥
(९०५१) आरण्यतुलसीलेपः समं कल्कं लान्तपात्रे निम्बतैलेन भावयेत । (वै. म. र. । पटल १७ ) मासमात्रं ततस्तेन लेपाद्भवति रञ्जनम् ॥ आजेन पयसा पिष्टामारण्यतुलसीशिफाम् ।
आमकी गुठलीकी मज्जा ( गिरी ), हर, आधिप्योद्वर्तयेद्वक्त्रं व्यङ्गलोपमना नरः ॥ बहेड़ा, आमला, अतीस (या भांग), फूलप्रियंगु, बन तुलसीकी जड़के चूर्णको बकरीके दूधमें विजौ रे नीबूकी जड़, हल्दी, नील, कमलनाल, पीसकर चेहरे पर लेप करने और मलने से व्यङ्ग सीसा धातका बारीक चूर्ण ओर लोहचूर्ण समान भाग (आई) का नाश होता है ।
इत्याकारादिलेपप्रकरणम्
अथाकारादिनस्यप्रकरणम् (९०५२) आरग्वधादिनस्यम् अमलतासकी ताज़ी जड़को चावलोंके पानीके
( वृ. मा. ; यो. र. । गलगंडा.) साथ पीसकर उसकी नस्य लेने और उसीका लेप आरबधशिफां क्षिप्रं सम्यक्तण्डुलवारिणा। करनेसे गण्डमाला नष्ट हो जाती है । पिष्ट्वा नस्यप्रलेपाभ्यां गण्डमालां समुद्धरेत् ।।
इत्याकारादिनस्यपकरणम्
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