Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
अथ इकारादिनस्यप्रकरणम्
(९०९२) इङ्गुदीफलनस्यम् ( र. चि. म. । स्त. ९ ) इङ्गुदीफलचूर्णस्य नस्येन च शिरोगताः । पतन्ति कृमयो दुष्टाः श्वेता रक्ताश्च ये स्थिताः ||
इति इकारादिनस्यप्रकरणम्
अथ इकारादिरसप्रकरणम्
(९०९३) इच्छाभेदोरस: (१) ( र. प्र. सु. । अ. ८; शा. सं. । खं. २ अ. १२; २. का. . । उदरा. ) शुण्ठीपिप्पलीटङ्कणं सदरदं प्रत्येकमेवाक्षकं माहा पलमात्रका कथिता दन्तीफलं तत्समम् । चूर्णीकृत्य समांशकानि
सततं गोदुर्भावयेत् ags: सितया समं
रसवरः संभक्षितो रेचकृत् ॥ सोंठ, पीपल, सुहागे की खील और शुद्ध हिंगुल ११-११ तोला, चोक ५ तोले और शुद्ध जमालगोटा ५ तोले लेकर सबके चूर्णको एकत्र मिलाकर गोदुग्धमें खरल करके २-२ या ३-३ रत्तीकी गोलियां बना लें ।
इनमें से एक गोली मिश्री के साथ खाने से विरेचन होता है ।
( अनुपान --- शीतल जल | )
इंगुदी (हिंगोट )
फलका बारीक चूर्ण करके उसकी नस्य लेनेसे सिरके खेत और लाल कृमि निकल जाते हैं ।
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[ इकारादि
(९०९४) इच्छाभेदीरमः (२) (र. का. घे. | रा.)
शुण्ठीपारदणं सुविमलं सेहुण्डकं तत्सम जैपाले त्रिगुणं तदेव निभृतं दन्तीजले घर्षितम् । तच्चात्र त्रिवृताजले विलुलितं सूर्याशुभिः शोषितम् aisi गुडसम्मितो मुनिवरैरिच्छा विभेदी स्मृतः ॥ सन्निपाते तथा बाते महाजीर्णे समुद्भवे । आमाजीर्णे तथाsssमाने दातव्यं रक्तिकात्रयम् । शर्करादधिभक्तं च पथ्यं देयं विचक्षणैः ॥
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साँठका चूर्ण, पारद ( रससिदूर ), सुहागे की खाल और हुंड ( थूहर ) का दूध १-१ भाग तथा शुद्ध जमालगोटा ३ भाग लेकर सबको एक खरल करके दन्तीमूलके क्वाथमें १ दिन घोटें और फिर १ दिन निसोतके क्वाथमें खरल करके धूप सुखा लें ।
इसे गुड़ साथ देनेसे विरेचन होता है ।