Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ इकारादि
कल्क-लोध, कायफल, मजीठ, कमलकेसर, | दारण, दन्तचालन, हनुमोक्ष, कपालिका, शीताद, पमाक, सफेदचन्दन, नीलोत्पल, मुलैठी और धायके पूतिवक्त्र, शौषिर और मुखकी विरसताका नाश फूल; इनका चूर्ण ५-५ ताले लेकर पानीके साथ होता तथा दांत दृढ़ होते हैं । पीस लें।
। इरिमेदाध तैलम् इस तेलके गण्डूष धारण करनेसे दन्तपीडा, प्र. सं. ८८६१ अरिमेदाद्य तैलम् देखिये ।
इति इकारादितैलप्रकरणम्
अथ इकारादिलेपप्रकरणम् (९२८२) इक्षुमूलादिलेपः इंगुदी ( हिंगोट ) के फलकी मजाको अत्यन्त ( वै. म. र. । पटल १६)
शीतल जलके साथ पीसकर लेप करने से २१ दिन में
मुखव्यङ्ग (झांई )का नाश होता है । इक्षुमूलमधुकाअनदावी
(९०८४) इगुधादिलेपः लोध्रमैरिकपटुत्रिफलानाम् ।
(ग. नि. । ज्वरा. १) लेपनं बहिरिदं नयनानां
इदिनिशाविशाला क्षीरपिष्टमपहन्ति विकारम् ॥
सैन्धवारदारुकुष्ठरविदुग्धः। ईसकी जड़, मुलैठी, सुरमा ( या रसौत ), दत्तः क्रमेण लेपो हरति महाकर्णकग्रन्थिम् ॥ दारुहन्दी, लोध, गेरु, सेंधानमक, और त्रिफला; इंगुदी (हिंगोट ), हल्दी, इन्द्रायणकी जड़, इनके समान भाग मिलित चूर्णको दूध में पीसकर | सेंधा नमक, देवदारु, और कूठ; इनका चर्ण तथा आंखों के बाहर लेप करनेसे नेत्राभिष्यन्द नष्ट होता है। ओकका दूध समान भाग लेकर पीसकर लेप करने
(यह प्रयोग पित्ताभिष्यन्द में उपयोगी है।) से कर्णक-सन्निपातमें होने वाली कानके पीछेकी (९०८३) इदीफलमज्जालेपः
| गांठकी सूजन नष्ट होती है।
(९०८५) इन्द्रयवलेपः ( रा. मा. । मुखरोगा. ५)
| (ग. नि. । विस्फोटा. ४०) सुदीफलसमुद्भवमज्जा
| विस्फोटव्याधिनाशाय तण्डुलाम्बुमपेषितैः। पेषिताऽतिशिशिरेण जलेन । बीजैः कुटजवृक्षस्य लेपः कार्यों विजानता ॥ एकविंशतिदिनप्रविलिता
____इन्द्रजौ के चूर्णको चावलों के पानीके साथ व्यामाननभवं परिमाष्टि ।। पीसकर लेप करनेसे विस्फोटक का नाश होता है ।
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