Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लेपप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
४६३
(९०८६) इन्द्रवारुणिमूललेपः (१) । (९०८९) इन्द्रवारुण्यादिलेपः (२) ( रा. मा. । व्रणा. २५)
(वैद्यामृत ) व्रणपर्यन्तालेपान्मूलं जलपिष्टशक्रवारुण्याः। इन्द्रवारुणिकामूललेपाघाति कुचव्यथा । कर्षति नष्टं शल्यं कदाचिदजशृङ्गिकामूलम् ।। । तथा कुमारिकाकन्दहरिद्रालेपनादपि ।। ___ यदि लकड़ी, कांटा आदि शरीर में घुसकर इन्द्रायणकी जड़का या घीकुमार (ग्वारपाठा) अन्दरही टूट जाय तो इन्द्रायणको जड़के चर्णको | की जड़ और हल्दीका लेप करनेसे स्तनांकी पीडा पानीमें पीसकर घाव पर लेप करदें इससे वह नष्ट हो जाती है। बाहर निकल आएगा।
(९०९०) इन्द्रवारुण्यादिलेपः (३) मेढासिंगीकी जड़का लेप करनेसे भी नष्ट शल्य
(वैद्यजीवन । वि. ३) निकल आता है।
तरण्युत्तरणीमूलं छागीसर्पिः सनागरम् । (९०८७) इन्द्रवारुणीमूललेपः (२)
| शिवशस्त्राभिधां बाधां योनिस्थां हन्ति सत्वरम् । (रा. मा.। वृद्ध्य. १६)
___ इन्द्रायणकी जड़, घृतकुमारी और सोंठके चर्णको सुरेन्द्रवारुणीमूलं तृपमत्रेण पेषितम् ।
बकरीके घीमें पोसकर योनिमें लेप करनेसे योनिशूल चमकीलानिहन्त्याशु प्रलेपात्साधनोद्भवान ॥
शीघ्रही नष्ट हो जाता है। इन्द्रायण की जड़के चूर्णको बैलके मूत्रके साथ (९०९१) इन्द्रायुधादिलेपः पीसकर लेप करनेसे चमकीलका नाश होता है।
( वृ. मा. । वृद्ध्य.) (९०८८) इन्द्रवारुण्यादिलेपः (१)
| इन्द्रायुधरविक्षीरमित्रैश्चणकसक्तुभिः । ( शा. सं. । खं. ३ अ. ११ )
| सिन्दूरसैन्धवोपेनैर्लेपो हन्ति कुरण्डकम् ।। इन्द्रवारुणिकाबीजतैलेनाभ्यङ्गमाचरेत् ।
__ चनोंका सत्तू , सिन्दूर और सेंधा नमक का प्रत्यहं तेन जायन्ते कुन्तला भृङ्गसन्निभाः॥ चर्ण समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर
इन्द्रायणके बीजोंके तैलकी नित्य शिर पर थूहर ( सेहुंड ) और आकके दूधमें पीसकर लेप मालिश करनेसे बाल भौं रके समान काले होजाते हैं। | करने से कुरण्ड रोग नष्ट होता है ।
इति इकारादिलेपप्रकरणम्
For Private And Personal Use Only