Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तेलप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
४६१
(९०
__अथ इकारादितैलप्रकरणम
इन्द्रजौका चूर्ण २० तोले, मजीठका चूर्ण ।
२॥ तोले, तिलका तेल २ सेर और कांजी २००
| सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें। तिक्तेक्ष्वाकुबीजं द्वे तुत्थे रोचना हरिद्रे द्वे ।
| जब कांजी जल जाए तो तेलको छान लें । वृहतीफल मेरण्डः सविशालः चित्रको मूर्वा ॥ |
___ इसकी मालिशसे ज्वर और प्रबल दाहका नाश काशीशहिङ्गुशिगूत्र्युषणसुरदारुतुम्बरुविडङ्गम् ।
| होता है तथा अङ्गोंमें चैतन्यता आती है । लाङ्गलकीकुटजत्वकटुकाख्या रोहिणी चैव ॥ सर्वपकल्कैरेतैमत्रे चतुर्गुणे साध्यम् ।
(९०८१) इरिमेदाद्यतैलम् कण्डूकुष्ठविनाशनमभ्यङ्गान्मारुतकफघ्नं तैलम् ॥
___ (ग. नि. । तैला. २) कड़वी तूंबीके बीज, दो प्रकारका तुत्थ (मयूर न वृद्धानातिबालाच्च त्वक्तुलामिरिमेदकात् । तुत्थ और खर्परी तुत्थ ), गोरोचन, हल्दी, दारुहल्दी, अपां द्रोणे समावाप्य पचेत्पादावशेषितम् ।। बड़ी कटेली के फल, अरण्डमूल, इन्द्रायणकी जड़, ततस्तेन कषायेण क्षीरमस्थसमन्वितम् । चित्रकमूल, मूर्वा, कसीस, हींग, सहजनेकी छाल, लाक्षारससमायुक्तं तैलप्रस्थं पचेन्नरः ।। सोंठ, मिर्च, पीपल, देवदारु, तुम्बरु, बायबिडंग, लोप्रकटफलपभिष्ठापद्मकेसरपनकैः । कलियारी, कुड़ेकी छाल, कुटकी और सरसों समान चन्दनोत्पलपष्टयाः पालिकैर्धातकीसमैः ।। भाग मिलित २० तोले लेकर कल्क बनावें । एतदुजापहं नाम तैलं गण्डूषधारणात् ।
२ सेर ( सरसोंके ) तेलमें यह कल्क और दारणं दन्तचालं च हनुमोक्षं कपालिकाम् ॥ ८ सेर गोमूत्र मिलाकर यथाविधि तैल सिद्ध करें। शीतादं पूतिवक्त्रं च शौषिरं विरसास्यताम् ।
इसकी मालिशसे खुजली, कुष्ट, वायु और । हन्यादाशु गदानेतान् कुर्यादन्तांस्थिरानपि ।। कफका नाश होता है।
___जो इरिमेद ( दुर्गधित खैर ) का वृक्ष न (९०८०) इन्द्रयवाद्यं तैलम्
बहुत छोटा हो न बहुत पुराना उसकी ६। सेर
छाल लेकर कूटकर ३२ सेर पानी में पकावें और (रा. मा. । ज्वरा. २०)
८ सेर शेष रहने पर छान लें। इन्द्रयवकुडवं मनिष्ठाया पलार्धमादाय ।। तदनन्तर २ सेर तिलके तेलमें यह क्याथ, तैलप्रस्थं तेन प्रस्थशने कानिके विपचेत् ॥ २ सेर गोदुग्ध, २ सेर लाखका रस और निम्न उपयुक्तं तदारुणदाहज्वरनाशनं भवति पुंसाम् । लिखित कल्क मिलाकर पकावें । जब जलांश शुष्क अङ्गानां च करोति प्रहर्षमभ्यङ्गयोगेन हो जाए तो तेलको छान लें ।
For Private And Personal Use Only