Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
४६५
यह रस सन्निपात ज्वर, वायु, अजीर्ण, आमा- इनके सेवनसे विरेचन होकर समस्त रोग जीर्ण, और आध्मानमें उपयोगी है । | नष्ट हो जाते हैं। मात्रा-३ रत्त।
अनुपान-उष्ण जल । पथ्य-खांड, दही और भात |
(९०९६) इच्छाभेदीवमनम् ( अनुपान- शीतल जल । )
( र. का. घे. । छZ.) (९०९५) इच्छाभेदीरसः (३) अर्ध तालाच तुत्थान द्वावेकं नवसादरम् ।
(र. का. धे.। उदरा.) गन्धाहोलाच मदनान्मर्द येत्फेनिलद्रवैः ॥ त्रिकटु त्रिफला मूतं गन्धकं टङ्कणं समम् । ताम्रण तस्य माषस्तु ज्वरं छदि विनाशयेत् ।। सर्वेस्तुल्यं तु जैपालं सर्वव्याधिहरं परम् ॥ शुद्ध हरताल आधा भाग, शुद्ध नीलाथोथा रेचनं निष्कमात्रेण हितमुष्णेन वारिणा ॥ २ भाग तथा नौसादर, शुद्ध गंधक, बोल और ___सोंठ, काली मिर्च, पीपल, हर, बहेडा, | मनफल १-१ भाग लेकर सबको एकत्र खरल आमला; इनका चूर्ण, शुद्ध पारद, शुद्र गंधक और करके ? दिन तांवे की मूसलीसे लिहसोड़ेके रसमें सुहागेकी खील १-१ भाग तथा शुद्ध जमालगोटा | घोटकर सुखा लें। सबके बराबर लेकर प्रथम पारे गंधककी कजली इसे खिलानेसे ( वमन होकर ) ज्वर और बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर छर्दिका नाश होता है । ( पानीके साथ ) खरल करके ( १-१ रत्तीकी) मात्रा--१ माशा । गोलियां बना लें।
(व्यवहारिक मात्रा--१ रत्ती ।)
इति इकारादिरसप्रकरणम्
- * - --
अथ इकारादिमिश्रप्रकरणम् (९०९७) इक्ष्वाकुयोगः सबके चूर्णको स्नुही ( थूहर-सेहुंड ) के दूधमें
मिलाकर बत्ती बनावें । ( भा. । प्र. । म. ख. २ स्त्री. : यो. र. वी
____ इसे योनिमें रखनेसे मासिक धर्म खुल जाता है । इक्ष्वाकुबीजदन्तीचपलागुडमदनकिण्वयावशूकैः।
मदनाकण्वयावशूकः । (५०९८) इक्ष्वादियोगः सास्नुक्क्षीरैवतियोनिगता कुसुमसअननी ॥
( यो. र. | क्षतकासा.) कड़वी तुंबाके बीज, दन्तीमूल, पीपल, गुड़, इविक्षुवालिकापद्ममृणालोत्पलचन्दनैः । मैनफल, जवाखार और सुरा बीज समान भाग लेकर | शृतं पयो मधुयुतं सन्धानार्थ पिबेत्क्षती ।।
For Private And Personal Use Only