Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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तैलपकरणम् ]
परिशिष्ट
४७७
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(९०४३) आदित्यपाकगुडूचीतेलम् अमलतासकी जड़के क्वाथ तथा चौंटली
(र. र. ; च. द. । क्षुद्ररोगा.) (गुंजा ), बाबची और गंधकके कल्कके साथ वटावरोहकेशिन्योश्चूर्णेनादित्यपाचितम् ।
मालकंगनी का तेल सिद्ध करें । गुडूचीस्वरसे तैलं चाभ्यङ्गाकेशरोपणम् ॥
इसकी मालिशसे सिध्म और उदम्बर कुष्ठ ___बड़के अंकुर और जटामांसी का चूर्ण (५-५ नष्ट होता है । तोले ), गिलोयका स्वरस ( ४ सेर ) और तिलका (तेल १॥ सेर, अमलतासमूलका क्वाथ ६ तेल ( १ सेर ) लेकर सबको एकत्र मिलाकर सेर, कल्ककी प्रत्येक ओषधि ५ तोले । ) धूपमें रख दें। जब गिलोयका रस मूख जाए तो (९०४५) आरग्वधादितैलम् (२) तेलको छान लें।
(यो. र. । शोथा.) इसकी मालिश से गिरे हुवे बाल पुनः निकल आते हैं।
कफोत्थेऽत्र पिवेत्तैलं सिद्धमारग्वधादिना । (९०४४) आरग्वधादितलम् (१) । कफोत्थ शोथमें आरम्वधादि गणके कल्क ( र. र. स. । उ. अ. २०)
और क्याथसे सिद्ध तेल पिलाना चाहिये । आरग्वधरसो गुभावाकुचीगन्धकत्रयैः । ( आरग्वधादि गण भा. भै. र. भाग १ के सरसैः कङ्गुणीतैलं जयेसिध्ममुदुम्बरम् ॥ । आकारादि कषाय प्रकरणमें देखिये । )
इत्याकारादितैलप्रकरणम्
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अथाकारादिलेपप्रकरणम् (९०४६) आभलकादिलेपः (९.०४७) आमलक्यादिलेपः ( शा. सं. । खं. ३ अ. ११)
(व. से. । बालरो)
आमलक्याः पलान्यष्टौ गोमूत्रे सप्तभावयेत् । आमलं घृतभृष्टं तु पिष्टं कामिकवारिभिः ।।
भावयित्वातपे पश्चाद्विच्छिलिप्ता प्रशाम्यति ॥ जयेन्मृधि मलेपेन रक्तं नासिकया मृतम ॥
____४० तोले आमलोंके चूर्णको गोमूत्रकी सात __ आमलेको धीमें भूनकर कांजीमें पीसकर भावना देकर धूप में सुखा लें। शिरपर लेप करनेसे नासिकासे होने वाला रक्तस्राव इसे (गोमूत्र या पानीमें पीसकर) लेप करने बन्द हो जाता है।
से बालकोंका विच्छिन्न रोग नष्ट होता है ।
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