Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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घृतपकरणम् ]
परिशिष्ट
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घृतार्द्रभागेन च माक्षिकेण शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि मनुष्य १० स्त्रियोंकों
विधाय पाकं सहदुग्धपानः। संतुष्ट कर सकता है। सुजीत यस्त्वाशु च कामिनीनां
(मात्रा--१ से २ तोले तक ।) दशं तु विद्रावयते पुरस्तात् ॥
(९०३७) आमलक्यादिलेहः
(हा. सं. । स्था. ३ अ. १६) आमले के पके फलोंके शुष्क चूर्णको आम
आमलक्या रसेनाथ घृष्टं चन्दनकं मधु । लेही के स्वरसकी १०० भावना दें। तदनन्तर उसे
गुटिकामलमानेन लेहो हन्ति वर्मि ध्रुवम् ॥ समान भाग घीमें भून लें और घोसे दो गुनी खांडकी
___आमले के रसमें सफेद चन्दनको घिस लें। चाशनी में मिलाकर उसमें घीसे आधा शहद मिला- इसमें शहद मिलाकर एक आमले के बराबर (१ कर सुरक्षित रखें।
तोले के लगभग) चाटने से वमन अवश्य नष्ट इसे दूधके साथ सेवन करने से शीघ्रही काम- | हो जाती है ।
इत्याकारादिलेहप्रकरणम्
अथाकारादिघृतप्रकरणम् (९०३८) आमलकघृतम्
आरग्बध ( अमलतास )की जड़के कल्क और
क्वाथके साथ १०० बार पकाया हुवा घृत पीने (सु. सं. । चि. अ. ५)
और खरसारका क्वाथ (पानीकी जगह ) पीनेसे सर्वेषु च पुराणघृतमामलक
कुष्ठ रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। रसविपक्वं वा पानार्थे ॥
...( अमलतासकी जड़ २ सेर, पानी १६ सेर, . आमलेके रसके साथ पकाया हुवा पुराना घी
शेषक्वाथं ४ सेर; इसमें १ सेर धी और १० तोले पिलाना हर प्रकारके वातरक्तमें लाभ पहुंचाता है।।
अमलतासकी जड़ का कल्क मिलाकर पकावे ।
क्वाथ जलनेपर छान लें। उसमें पुनः उपरोक ( रस ८ सेर, घी २ सेर ।) क्वाथ और कल्क डालकर पकावें । इसी प्रकार (९०३९) आरग्वधादिघृतम्
१०० बार पाक करें ।)
(९०४०) आरुष्करघृतम् ( वा. भ. । चि. अ. १९)
(व. से. । ग्रहण्य.) आरग्वधस्य मूलेन शतकृत्वः भृतं घृतम् । । आरुष्करं हिङ्गु कणा सयष्टी पिबन्कुष्ठं जयत्या भजन्सखदिरं जलम् ॥ | पूतीकशुण्ठी मरीचं गजाहा। .
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