Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
परिशिष्ट
४३१
गुभ्रामात्र प्रदातव्यो विमूत्रशिरसोग्रहे। बनावें और उसका एक गोला या टिकिया बना कासे श्वासे क्षये शृले सर्वरोगेषु योजयेत् ॥ | लें । तदन्तर उस पिट्टीके बराबर शुद्ध गंधक और
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गंधक १ भाग, | उतना ही सेंधा नमकका चूर्ण लेकर दोनों को शुद्ध वछनाग ३ भाग, शंख भस्म ८ भाग, कौडी | एकत्र खरल करें। इस चूर्णको उपरोक्त टिकिया पर भस्म ३ भाग, सुहागेकी खील २ भाग और काली चारों ओर लपेटकर उस पर नीबूका रस डालकर मिर्चका चूर्ण ८ भाग लेकर प्रथम पारे गंधककी | धूपमें सुखालें । जब वह सूख जाय तो पुनः रस कजली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां डालें । इसी प्रकार बार बार रस डालकर ८ दिन मिलाकर जम्बीरी नीबूके रसमें खरल करें। तक धूप में सुखावें । तदनन्तर उस टिकिया को इसके सेवनसे वातव्याधि, अग्निमांद्य, अजीर्ण,
पानीसे धोकर स्वच्छ करें ( लवणांश बिल्कुल निकाल चर, कफ, विसूचिका, मूत्रग्रह, मलावरोध, शिरोग्रह,
देना चाहिये । ) इसके पश्चात् उसमें उपरोक्त कास, श्याम, क्षय और शूलका नाश होता है ।
पिट्ठीके बराबर (४ भाग) अभ्रक भस्म मिलाकर
| ३-३ भावना भंगरेके रस, अदरकके रस और मात्रा–१ रत्ती ।
चनेके क्षारजलकी दे कर ३-३ रत्तीकी गोलियां (८९२५) अग्निकुमाररसः (५) । बना लें। (र. का. धे. । ग्रहण्य.)
इसे हर्र, पीपल और गुड़के समान भाग एकभागं ताम्रचूर्ण शुद्धमृतं त्रिभागकम्।
मिलित (३ माशा) चूर्णके साथ खानेसे अग्निअम्लेन कारयेपिष्टी नवनीतनिभां बुधः ॥
मांधका नाश होकर अग्नि दीप्त हो जाती है । पृथक् पिष्टीसमं गन्धं सैन्धवं चूर्णयेत्ततः ।
___(८९२६) अग्निकुमाररसः (६) पिष्टिकोपरि तच्चूर्ण क्षिप्त्वा निम्बूरसं क्षिपेत् ॥ (र. का. धे, । ग्रहण्य.) वारं वारं रसं दत्वा स्थाप्य धर्मे दिनाष्टकम् । रसगन्धकणाजाजीटङ्कणं दीप्ययुग्मकम् । ततः प्रक्षाल्य पिष्टीं तां पिष्टयकं मृतमभ्रकम् ॥ जातीपत्रफले देवपुष्पं सामुद्रकं फलम् ॥ दत्त्वा भृङ्गरसैर्भाव्यं त्रिवार चाकद्रवैः। विषं वचा पारसिका त्रित्रिशाणमिता इति । त्रिवारं चणकक्षारैस्ततः सिद्धो भवेद्रसः ॥ पलद्वयमधुघृते पलार्धं खण्डतस्ततः॥ त्रिगुलं भक्षयेन्नित्यं पथ्याकृष्णागुडैः समम् । | सर्वमेकीकृतं चास्य मात्रातः कारयेद् गुटीम् । अयमग्निकुमाराख्यो रसोमन्दाग्निदीपनः ॥ अयमग्निकुमारस्तु कथितो ग्रहणीहरः ॥
शुद्ध ताम्र चूर्ण (भस्म) १ भाग और शुद्ध | दृष्टोऽयं बहुधा वैद्यैः सद्यः प्रत्ययकारकः ।। पारद ३ भाग लेकर दोनों को नीबूके रसमें एकत्र शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, पीपल, जीरा, सुहागेकी खरल करके नवनीतके समान कोमल पिष्टी (पिट्ठी) खील,अजवायन,जावित्री, जायफल, लौंग, समुद्रफल,
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