Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
- ४५५
(८९८०) अमृतार्णवरसः (१) दिन पश्चात् हींग, शुद्ध हिंगुल, शुद्ध गंधक, स्वर्ण(र. र. स. । उ. अ. २७ )
माक्षिक और काला सुरमा बराबर बराबर लेकर
बारीक चूर्ण करें और उसमें से ५ तोले ७॥ माशे कृत्वा कण्टकवेध्यानि पलस्वर्णदलान्यथ ।
{ चूर्ण लेकर उपरोक्त स्वर्ण पत्रोंके ऊपर नीचे रखकर हिङ्गहिङ्गुलगन्धाश्मताप्यनीलाअनैः समैः ॥
उन्हें शरावसम्पुट में बन्द करके पुट में फूंक दें । इसी अष्टांशरसलिप्तानि निक्षिपेदुपले व्यहम् ।
प्रकार १०० पुट लगावें । इससे सोनेकी निरुत्थ कृतं चूर्णमधश्चोर्ध्व पत्राणां विनिधाय च ।। | भस्म हो जायगो । शतवारं पुटेत्सम्यङ् निरुत्थं भस्म जायते ।
___ (हींग आदिका चूर्ण हरबार नहीं डालना तद्भस्मद्विगुणं सूतं तस्मादिगुणहिङ्गलः॥
चाहिये नहीं तो ५ तोले स्वर्णमें १०० तोला तस्माञ्च द्विगुणं ताप्यं सर्वमेकत्र मर्दयेत् ।
सुरमेकी भस्म मिश्रित हो जायगी।) रसेन मातुलुङ्गस्य निरन्तरदिनद्वयम् ।।
___ तदनन्तर १ भाग यह भस्म, २ भाग शुद्ध तुषैः पुटत्रयं दद्याद्गोकरीपैः पुटत्रयम्।
पारद, ४ भाग शुद्ध हिंगुल और ८ भाग स्वर्णपुटानि दश विंशत्या छाणानां प्रकल्पयेत् ॥
माक्षिक भस्म, लेकर सबको एकत्र मिलाकर निरन्तर त्रिंशद्भि छगणैर्दद्यात्पुटानामथ विंशतिम् ।।
२ दिन जम्बीरी नीबूके रसमें खरल करें और तस्मिन्वक्रान्तजं भस्म निक्षिपेत्पादमात्रया ॥
टिकिया बनाकर सुखाकर शराव-सम्पुटमें बन्द सर्वमेकत्र सञ्चूर्ण्य भृङ्गराजनिजद्रवैः ।
| करके तुषाग्निमें (धानकी भूसीकी आगमें) फंक दें। भावयेत्सप्तवाराणि सिद्धयत्येवमयं रसः॥
| इसी प्रकार ( नीबूके रसमें घोट घोटकर ) तुषाग्निमें श्रीमता नन्दीना प्रोक्तो रसोयममृतार्णवः। ३ पुट दें। फिर ३ पुट गायके गोबरकी अग्निमें गुनाबीजमितःसिताघृतकणासंयोजितः सेवितः। दें। तदनन्तर १० पुट २०-२० बनकण्डों (अरने कुर्याद वृष्यमनेकशो वरवधूसन्तोषसंपाषणः॥ उपलों) की आगमें दें और २० पुट ३०-३० यक्ष्मव्याधिविधृननो गरहरः पर्याप्तदीप्तानलो। कण्डोको दें। ( हरबार नीबूके रसमें खरल कर मलव्याधनिवारणः किमपरं सर्वामयध्वंसनः॥ लेना चाहिये ।) रम्भापकफलं घृतं दधिपयः क्षरेयक मण्डका।
तदनन्तर उसमें उसका चौथा भाग वैक्रान्तबाल तालफलं सिता च पललं सन्तानिका मोदकाः भस्म मिलाकर भंगरेके रसकी सात भावना दें। खरं वरपानकं च वटकाः पुण्डेक्षवः सारसं। बस अमृतार्णव रस तैयार है । यह रस श्रीमान् गुर्वन्नं पनसं तथा शिखरिणी पथ्यं रसेऽस्मिन्मतम्॥ नन्दिने बतलाया था।
५ तोले स्वर्ण के बारीक कंटकवेधी पत्र लेकर मात्रा-१ रत्ती । उन पर आठवां भाग (७॥ माशे ) शुद्ध पारेका इसे मिश्री, घी और पीपलके चूर्णके साथ लेप करदें और पत्थरके खरल में रख छोड़ें। तीन ! सेवन करना चाहिये।
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