Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ आकारादि अमलतास, धाय, कर्णिकार (छोटा (९०१७) आरग्वधादिक्वाथः (३) अमलतास ), धव, अर्जुन, सर्ज (रालका
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ३२) वृक्ष), पलास, कदम्ब, नीम, कुड़ा, बासा (अडूसा), खैर और मूर्वा; इनकी जड़ें समान भाग
आरग्वधफलगर्भ दुरालभा धान्यकशतावर्यः । लेकर आठ गुने पानीमें पकावें और आठवां भाग
पाषाणभेदपथ्याक्वाथोऽयं मूत्रकृच्छे स्यात् ।। रहने पर छान लें। इसमें घी मिलाकर पीनेसे कुष्ठ,
____ अमलतासका गूदा, धमासा, धनिया, शतावर, विसर्प, दद्रु और विचर्चिकाका शीघ्र ही नाश हो
पाषाणभेद (पखानभेद) और हर्र समान भाग जाता है।
लेकर क्वाथ बनावें। (९०१६ ) आरग्वधादिक्वाथः (२)
यह क्वाथ मूत्रकृच्छूको नष्ट करता है। (ग. नि. । ज्वरा.)
(९०१८) आईकस्वरसः आरग्वधो मुष्ककश्च मदनः स्वादुकण्टकः।
(शा. सं. । खं. २ अ. १) सप्तपर्णस्तथोशीरं शिरीषः खदिरास्नौ ॥ वत्सकः प्रग्रहो मूर्वा नक्तमालो वितुन्नकः ।
आईकस्वरसः क्षौद्रयुक्तो वृषणवातनुत् । पटोलपिचुमन्दौ च हरिद्रा कटुरोहिणी ॥
श्वासकासारुचीहन्ति प्रतिश्यायं व्यपोहति ॥ त्रिफला देवकाष्ठं च भद्रमुस्तं निदिग्धिका ।
___अदरकके स्वरसमें शहद मिलाकर पीनेसे
अण्डकोषोंकी वायु, श्वास, कास, अरुचि और एतान्याहृत्य तुल्यानि कषायमुपसाधयेत् ॥ तं कषायं पिबेद्युक्त्या सन्निपातोद्भवे ज्वरे।
प्रतिश्यायका नाश होता है। कासे श्लेष्मप्रसेके च श्वयथावरुचौ तथा ॥
(मात्रा-३ माशेसे ६ माशे तक ।) अमलतासका गूदा, सुष्कक (मोखावृक्ष)की (९०१९) आर्द्रकादिस्वरसः छाल, मैनफल, गोखरु, सतौनेकी छाल, खस, सिर
(वृ. मा.। कर्णा.) सकी छाल; खैरसार, असना वृक्षकी छाल, इन्द्रजौ, छोटे अमलतासकी छाल, मूर्वा, करंज.धनिया, पटोल
आर्द्रकसूर्थावर्तकसौभाअनमूलमूलकस्वरसाः। नीमकी छाल, हल्दी. कुटकी, त्रिफला, देवदारु,
त्रिफला. देवदास. मधुसैन्धवतैलयुताः पृथगुष्णाः कर्णशूलहराः॥ नागरमोथा और कटेली समान भाग लेकर क्वाथ ___अदरक, हुलहुल, सहजनेकी जड़ और मूली बनावें।
इनमेंसे किसीके भी स्वरसमें शहद, सेंधा नमक ___ यह क्वाथ सन्निपात ज्वर, खांसी, कफ प्रसेक | और तेल मिलाकर उष्ण करके कानमें डालनेसे शोथ और अरुचिको नष्ट करता है। कर्ण शूल नष्ट होता है।
इत्याकारादिकषायप्रकरणम्
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