Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[अकारादि
यह अत्यन्त वृष्य है और इसे सेवन करनेवाला | (८९८२) अमृतेशरसः अनेक स्त्रियोंको सन्तुष्ट कर सकता है ।
( र. र. रसा. खं. । उपदेश २ ) इसके अतिरिक्त यह राजयक्ष्मा, विष, अग्नि
मृतसूताभ्रकं कान्तं विषं ताप्यं शिलाजतु मांच, अर्श, और अन्य अनेक रोगों को भी नष्ट | तुल्यांशं मधसपिभ्यां लिहेदगुतात्रयं सदा। करता है।
षण्मासेन जरां हन्ति जीवेद्ब्रह्मदिनं नरः ॥ पथ्य-केलेका पका फल, घी, दही, दूध, |
अश्वगन्धामूलचूर्ण सप्तभागघृतैः समम् । धके बने पदार्थ, मण्ड, नवीन ताडफल, मिसरी, | भागाष्टकं गुडं तस्मिन् क्षिपेद्भागं च पिप्पलीम् ॥ तिलकुट, मलाई, लड्डू, खजूर, उत्तम शरबत, वटक
मृदामिना च तत्सर्व पिण्डितं भक्षयेत् पलम् । (पेड़े), पौंडा, सरोवरका जल, भारी अन्न, कटहल, | क्रामक खमृतेशस्य रसराजस्य सिद्धये ॥ और शिखरन ।
पारद भस्म, अभ्रक भस्म, कान्तलोह भस्म,
शुद्ध विष, स्वर्णमाक्षिक भस्म और शिलाजीत समान (८९८१) अमृतार्णवरसः (२)
भाग लेकर सबको एकत्र खरल करें। (र. र. स. । उ. अ. १८)
मात्रा-३ रत्ती । रसभस्म त्रयो भागा भागैकं हेमभस्मकम् । ।
इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे ६ सर्वाशममृता सत्त्वं सितामध्वाज्यमिश्रितम् ॥ | मासमें जरा ( वृद्धावस्था ) का नाश हो जाता है दिनैक मर्दयेत्खल्वे मापैकं भक्षयेत्सदा।
| तथा आयु अत्यन्त दीर्घ हो जाती है । कृशानां कुरुते पुष्टिं रसोयममृतार्णवः ॥
___ अनुपान-असगंधका चूर्ण ७ भाग, घी अश्वगन्धापलाधं च गवां क्षीरः पिवेदनु ॥
७ भाग, गुड़ आठ भाग और पीपलका चूर्ण १ पारदभस्म ३ भाग, स्वर्ण भस्म १ भाग और | भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर गिलोयका सत ४ भाग तथा मिश्री, शहद और | पकावें । इसमेंसे ५ तोला दवा उपरोक्त रस खानेके घी ( १-१ भाग ) लेकर सबको एकत्र मिलाकर | पश्चात् खानी चाहिये । १ दिन खरल करें।
(८९८३) अयश्चूर्णादियोगः (१)
( यो. र. । पाण्ड्वा.) मात्रा-१ माशा।
अयस्तिकत्र्यूषणकोलभागैः इसके सेवनसे कृश व्यक्ति पुष्ट हो जाते हैं।
सर्वैः समं माक्षिकधातुचूर्णम् । औषध खानेके पश्चात् २॥ तोले असगंधका तैर्मोदकः क्षौद्रयुतोऽनु तक्रः चूर्ण गोदुग्धके साथ पीना चाहिये ।
पावामये दूरगतेऽपि शस्तः॥
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