Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
परिशिष्ट
४३५
शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध मनसिल, शुद्ध (८९३५) अपस्मारारि रसः नीलाथोथा, कान्तलोह भस्म, स्वर्ण भस्म, समुद्रफेन,
(र. का. घे. । अपस्मारा.) हल्दी और मालकंगनी के बीज १।१। तोला लेकर प्रथम पारे गंधक की कग्जली बनावें और फिर मयूरतुत्थं रसगन्धयोयुतं उसमें अन्य औषधियों का चूर्ण मिलाकर सबको गुडूचिकातोयविमर्दितं दृढम् । नीबू के रसमें खरल करें एवं ५ तोले शुद्ध ताम्रकी शरावरुद्धं पुटितं प्रयत्नात् कटोरीके भीतर उसका लेप कर दें।
रम्भोत्थतोयेन दिनं विमर्थम् ।।
स स्यादपस्मारकरोगनाशनो तदनन्तरं एक कपरमिट्टी की हुई हाण्डीके
हैयं गवीनेन च वल्लयुग्मकः । भीतर यह कटोरी उल्टी करके रख दें और उसपर
हन्यादपस्मारकमेव यत्नतः मिट्टीका शराव ढक कर हांडीको राखसे भरदें तथा उसके ऊपर ढकना ढककर सन्धिको अच्छी तरह |
स सेव्यमानः कृतनिश्चयो बुधैः ।। बन्द कर दें और हाण्डीको चूल्हे पर चढ़ाकर उसके शुद्ध नीला थोथा, शुद्ध पारद और शुद्ध नीचे २ दिन (१६ पहर) अग्नि जलावें । तत्पश्चात् । गंधक समान भाग लेकर कज्जली बनावें और फिर स्वांगशीतल होने पर हांडीमेंसे ताम्रकी कटोरीको उसे गिलोयके रसमें खरल करके टिकिया बनावें निकाल कर पीस लें।
एवं सुखाकर शरावसम्पुटमें बन्द करके पुट लगादें । इसमें से नित्य प्रति प्रातःकाल २ रत्ती रस
तत्पश्चात् उसके स्वांग शीतल हाने पर औषधको
निकाल कर उसे १ दिन केलेके रसमें खरल करें। बच, सोंठ, मिर्च, पीपल और बायबिडंगके समान भाग मिलित (१॥-२ माशा ) चूर्णके साथ इसे ४ रस्ती मात्रानुसार गायके नवनीत खिलाकर बकरीका मूत्र पिलाना चाहिये । । (मक्खन) के साथ सेवन करनेसे अपस्मारका नाश १ सेर सरसोंके तेलमें बच, सोंठ, मिर्च,
होता है। पीपल और बायबिडंगका १० तोले कल्क तथा
( व्यवहारिक मात्रा--१-२ रत्ती।) ४ सेर पानी मिलाकर पकावें और पानी जल जाने (८९३६ ) अपूर्वो रसः (कर्पूररसः) पर तेलको छान लें।
( र. का. धे. । क्षयरोगा.) उपरोक्त रस खानेके आधा पहर पश्चात् इस रामठं शुद्धमानीय दशटङ्घ महोत्तमम् । तेल में त्रिकुटे का बारीक चूर्ण मिलाकर उसकी मषिकाद्वितयं कृत्वा रसं दत्वाऽवशोषयेत् ॥ नस्य लेनी चाहिये।
द्वितीया दीयते तस्या उपरिष्टाच्च मूषिका। इसके सेवनसे अपस्मारका नाश होता है। । सूक्ष्म छिद्रं पुनस्तस्या उपरिष्टाच कारयेत् ॥
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