Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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खकारादि-गुटिका
(३२३)
फूलों का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से रक्तपित्त | की दाह, शर्करा (रंग) अश्मरी (पथरी) मूत्ररोग का नाश होता है।
और वीर्य सम्बन्धी रोगों का नाश होता तथा बल [१०६३] खदिरादियोगः
और वीर्य की वृद्धि होती है। (ग. नि. । र. प्रमे.) [१०६५] खाडवं चूर्णम् खदिरं शकेरा दारुहरिद्रा मुस्तमेव च ।
[वृ. यो. त. । ८२ त.) पाठा च गुडमिश्रोऽयं हरेद्रोग प्रमेहजम् ॥ |
तुल्यं तालीसचव्योषणलवण
गजद्विःकणाग्रन्थ्यजाजीखैर, खांड, दारुहल्दी, नागरमोथा और पाठा
वृक्षाम्लामित्वचं त्रिर्धनषदरधसमान भाग लेकर चूर्ण करके गुड़ में मिलाकर
नैलाजमोदाम्लविश्वम् । सेवन करने से प्रमेह विकार नष्ट होते हैं।
सार्धश्वेताग्निसारोऽतिसृति [१०६४] खजूरादिचूर्णम् (यो. र. । दाह.)
कृमिवमौ खाडवोऽरुच्यजीणे। खजूरामलजीजानि पिप्पली च शिलाजतु ।
गुल्माध्माल्पानलाख्योदरएलामधुकपाषाणचन्दनैर्वा रुबीजकम् ॥
___ गलगद्ग्र हवासकासे ।। धान्याकं शर्करायुक्तं पातव्यं ज्येष्ठवारिणा ।
तालीसपत्र, चव्य, कालीमिर्च, सेंधानमक, अङ्गादाहं लिङ्गदाहं गुदवङ्क्षणशुक्रजम् ॥ नागकेसर, गजपीपल, पीपल, पीपलामूल, जीरा, शर्कराश्मरिशूलप्नं वृष्यं बलकरं परम् ॥ तितिडीक, चीता, दारचीनी, तीन प्रकार का मोथा, नाशयेन्मूत्ररोगांश्च तथा शुक्रभवानपि ॥ | | बेर, धनिया, इलायची, अजमोद, अम्लवेत, सोंठ, ___खजूर, आमले की गिरी, पीपल, शुद्ध शिला- बसलोचन (अथवा खांड या श्वेत अपराजिताजीत, इलायची, मुल्हैठी, पाषाणभेदी (पत्थर चटा) कोयल) और रसौत का चूर्ण बनाकर सेवन करने से चन्दन, खीरे के बीज और धनिये के चूर्ण में खांड | अतिसार, कृमि, वमन, अरुचि, अजीर्ण, गुल्म, मिलाकर ज्येष्ठाम्बु (चावलों के पानी) के साथ | अफारा, अग्निमांद्य, उदररोग, गले के रोग, हृद्रोग, सेवन करने से अङ्गदाह, लिङ्गदाह, गुद और वंक्षण | हृद्ग्रह, श्वास और खांसी का नाश होता है।
अथ खकारादि गुटिकाप्रकरणम् [१०६६] खदिरादि गुटिका (१) १-१ भाग तथा खैरसार (कथा) इन सबके बरा
(यो. र. । मु. रो.) बर मिलाकर गोलियां बनावें । यं खदिरसारस्य त्वेषां चूर्ण विनिक्षिपेत् ।
| इन्हें हर समय मुंह में रखने से मुख रोग
नष्ट होते हैं। जातीककोलकपरक्रमुकानां (णां) विचक्षणः॥ गुटिकास्तु प्रकर्तव्या मुखे स्थाप्याः सदैव हि ॥
[१०६७] खदिरादि गुटिका (२)
(यो. र. । कास) नायफल, ककोल, कपूर और सुपारी का चूर्ण | खादिरं पौष्करं शृङ्गी कद्फलं विजयष्टिका ।
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