Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[अकारादि ।
गोरखमुंडीके चूर्णको कांजीमें मिलाकर पीनेसे (८८२१) अश्वगन्धायोगः (१) मेद बढ़ जानेसे आनेवाली शरीरकी दुर्गन्ध शीघ्र
(वै. म. र. । पट. ४) ही नष्ट हो जाती है।
अश्वगन्धारजो लिह्याद्गुडन हविषाऽथवा । (मात्रा-३ से ६ माशे तक।) पयसा वा पिबेच्छस्त्रक्षतक्षीणो रसायनम् ॥ (८८१९) अलम्बुषाद्यं चूर्णम् ___ शस्त्राघातसे क्षीण हुवे मनुष्यको असगंधका (ग. नि. । चूर्णा. ३)
| चूर्ण गुड़ या घीमें मिलाकर खिलाना अथवा दूधके अलम्बुषाऽमृता शुण्ठी चित्रकं त्रिफला कणा। साथ पिलाना चाहिये। यावन्त्येतानि चूर्णानि वृद्धदारु च तत्समम् ।। ।
(मात्रा-३ से ६ माशा।) सूक्ष्मचूर्णाकृतान् सर्वान् स्वेच्छाहारविहारिणः। (८८२२) अश्वगन्धायोगः (२) पिबतस्तक्रमदिरा काझिकोष्णोदकैर्जयेत् ॥ (ग. नि. ; वृ. मा. । रसायना.; आमवातं यकृत्प्लीहं पाण्डुरोगं विचिकाम् ।
यो. त. । त. ७९) काङ्कायनेनोक्तमिदं चूर्णमग्निकरं परम् ॥ पीताऽश्वगन्धा पयसार्धमास
गोरखमुंडी, गिलोय, सोंठ, चीतामूल, हर्र, घृतेन तैलेन सुखाम्बुना वा । बहेड़ा, आमला और पीपल १-१ भाग तथा विधा- कृशस्य पुष्टि वपुषो विधत्त रामूल ८ भाग लेकर चूर्ण बनावें।
बालस्य सस्यस्य यथा सुदृष्टिः॥ इसे तक, मदिरा, कांजी या उष्ण जलके साथ असगंधके चूर्णको १५ दिन तक दूध, घी पीनेसे आमवात, यकृत्वृद्धि, प्लीहा, पाण्डु और विधू- या तेल अथवा उष्ण जलके साथ पीनेसे कृश मनुचिकाका नाश होता तथा अग्नि दीप्त होती है। ष्यका शरीर इस प्रकार पुष्ट हो जाता है जिस ____ यह चूर्ण श्री कांकायन नामक वैद्य द्वारा प्रकार वृष्टि होनेसे अनाजके पौदे बढ़ जाते हैं। आविष्कृत है।
___(८८२३) अश्वगन्धायोगः (३) (मात्रा-२-३ माशा)
(यो. त. । त. ७९ ; रा. मा. । रसायना. ३२) (८८२०) अवल्गुजादिचूर्णम् ।
| शिशिरे योऽश्वगन्धायाः कन्दचूर्ण पलोन्मितम् । (व. से | कुष्टा.)
| मासमत्ति समध्वाज्यं स वृद्धोऽपि युवा भवेत् ।। अवल्गुनादीजकप पिवेदुष्णेन वारिणा। शिशिर ऋतु ( माघ, फाल्गुन ) में असगंधकी भोजनं क्षीरसर्पिभ्यां सर्वकुष्टहरं परम् ॥ जड़का चूर्ण शहद और घीके साथ सेवन करनेसे
बाबचीका १। तोला चूर्ण नित्य उष्ण जलके ! १ मासमें वृद्ध पुरुष भी युवाके समान हो जाता है। साथ सेवन करने तथा दूध और घृतयुक्त आहार मात्रा-५ तोला। खानेसे समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते हैं।
(व्यवहारिक मात्रा-१ तोला)
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