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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [अकारादि । गोरखमुंडीके चूर्णको कांजीमें मिलाकर पीनेसे (८८२१) अश्वगन्धायोगः (१) मेद बढ़ जानेसे आनेवाली शरीरकी दुर्गन्ध शीघ्र (वै. म. र. । पट. ४) ही नष्ट हो जाती है। अश्वगन्धारजो लिह्याद्गुडन हविषाऽथवा । (मात्रा-३ से ६ माशे तक।) पयसा वा पिबेच्छस्त्रक्षतक्षीणो रसायनम् ॥ (८८१९) अलम्बुषाद्यं चूर्णम् ___ शस्त्राघातसे क्षीण हुवे मनुष्यको असगंधका (ग. नि. । चूर्णा. ३) | चूर्ण गुड़ या घीमें मिलाकर खिलाना अथवा दूधके अलम्बुषाऽमृता शुण्ठी चित्रकं त्रिफला कणा। साथ पिलाना चाहिये। यावन्त्येतानि चूर्णानि वृद्धदारु च तत्समम् ।। । (मात्रा-३ से ६ माशा।) सूक्ष्मचूर्णाकृतान् सर्वान् स्वेच्छाहारविहारिणः। (८८२२) अश्वगन्धायोगः (२) पिबतस्तक्रमदिरा काझिकोष्णोदकैर्जयेत् ॥ (ग. नि. ; वृ. मा. । रसायना.; आमवातं यकृत्प्लीहं पाण्डुरोगं विचिकाम् । यो. त. । त. ७९) काङ्कायनेनोक्तमिदं चूर्णमग्निकरं परम् ॥ पीताऽश्वगन्धा पयसार्धमास गोरखमुंडी, गिलोय, सोंठ, चीतामूल, हर्र, घृतेन तैलेन सुखाम्बुना वा । बहेड़ा, आमला और पीपल १-१ भाग तथा विधा- कृशस्य पुष्टि वपुषो विधत्त रामूल ८ भाग लेकर चूर्ण बनावें। बालस्य सस्यस्य यथा सुदृष्टिः॥ इसे तक, मदिरा, कांजी या उष्ण जलके साथ असगंधके चूर्णको १५ दिन तक दूध, घी पीनेसे आमवात, यकृत्वृद्धि, प्लीहा, पाण्डु और विधू- या तेल अथवा उष्ण जलके साथ पीनेसे कृश मनुचिकाका नाश होता तथा अग्नि दीप्त होती है। ष्यका शरीर इस प्रकार पुष्ट हो जाता है जिस ____ यह चूर्ण श्री कांकायन नामक वैद्य द्वारा प्रकार वृष्टि होनेसे अनाजके पौदे बढ़ जाते हैं। आविष्कृत है। ___(८८२३) अश्वगन्धायोगः (३) (मात्रा-२-३ माशा) (यो. त. । त. ७९ ; रा. मा. । रसायना. ३२) (८८२०) अवल्गुजादिचूर्णम् । | शिशिरे योऽश्वगन्धायाः कन्दचूर्ण पलोन्मितम् । (व. से | कुष्टा.) | मासमत्ति समध्वाज्यं स वृद्धोऽपि युवा भवेत् ।। अवल्गुनादीजकप पिवेदुष्णेन वारिणा। शिशिर ऋतु ( माघ, फाल्गुन ) में असगंधकी भोजनं क्षीरसर्पिभ्यां सर्वकुष्टहरं परम् ॥ जड़का चूर्ण शहद और घीके साथ सेवन करनेसे बाबचीका १। तोला चूर्ण नित्य उष्ण जलके ! १ मासमें वृद्ध पुरुष भी युवाके समान हो जाता है। साथ सेवन करने तथा दूध और घृतयुक्त आहार मात्रा-५ तोला। खानेसे समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते हैं। (व्यवहारिक मात्रा-१ तोला) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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