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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०१ चूर्णप्रकरणम् ] परिशिष्ट (८८२४) अश्वगन्धाधमुद्वर्तनम् श्रृंगकी भस्मको शहद में मिलाकर तकके साथ (ग. नि. । राजय. ९) | पीनेसे समस्त प्रमेह नष्ट हो जाते हैं। ( बीजोंका चूर्ण ६ मासे । शृंग भन्म.२ रत्ती ) अश्वगन्धा ह्यपामार्गों नाकुली गौरसर्षपाः।। तिला बिल्वं च कल्क: स्यात्क्षये तूद्वर्तनं परम् ।। (८८२७) असीतकचूर्णम् . (भा. प्र. । म. खं. २ आमवाता.) असगन्ध, अपामार्ग (चिरचिटा ), नाकुली असीतकं मागधिका गुडूची कन्द, सफेद सरसों, तिल और बेल छाल समान । श्यामा वराही गजकर्णशुण्ठी। भाग लेकर चूर्ण बनावें और उसे पानीके साथ । समधृताः कृत्स्नमिदन्तु चूर्ण पीसलें । पिबेत्तदुष्णोदकमण्डयूषैः ॥ क्षय रोगीके शरीर पर इसकी मालिश करना । तन रसैर्मद्यमस्तुभिर्वा हितकारक है। यथेष्टचेष्टस्य च भोजनस्य । (८८२५) अश्वत्थफलादियोगः अपवाहुकं गृध्रसि खअवातं (व. से. । वाजीकरणा.) विश्वाचितूनीप्रतितूनिरोगान् ॥ अश्वत्थ फलशुङ्गाग्रमूलं त्वग्भिः शृतं पयः । जङ्घामवातादितवातरक्तं पीत्वा सशर्करश्चैव वृद्धोऽपि तरुणायते ॥ कटिग्रहं गुल्मगुदामयश्च । प्रकोष्ठकं पाण्डुगरोग्रशोफं अश्वत्थ ( पीपल वृक्ष )के फल, अंकुर और | हन्यादुरुस्तम्भमुदीर्णवेगम् ॥ छालसे सिद्ध दूधमें खांड मिलाकर सेवन करनेसे ___ कोयल (अपराजिता), पोपल, गिलोय, काली वृद्ध पुरुष भी तरुणके समान हो जाता है। | निसोत, बाराहीकन्द, गजकर्ण पलाशकी छाल (८८२६) अश्वत्थबीजादियोगः और सांठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। ( वृ. यो. त. । त. १०३ ; वै. म. र. । पटल ७) इसे उष्ा जल, मण्ड, यूष, तक्र, मांसरस, अश्वत्थबीजं हरिणस्य शृङ्गं मद्य, या मस्तुके साथ पीनेसे अपबाहुक, गृध्रसि, तक्रेण पीतं मधुना सहैव । खञ्जवात, विश्वाची, तूनी, प्रतितूनी, जंघा गत प्रमेहजालं सहसैव हन्याद आमवात, अर्दित, वातरक्त, कटिग्रह, गुल्म, गुदशाननं दाशरथी यथैव ॥ | रोग, पाण्डु, गरविष, उग्र शोथ और प्रबल उरुस्तअश्वत्थ (पीपल )के बोजोंका चूर्ण और हरिण ! म्भका नाश होता है। इत्यकारादिचूर्णप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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