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चूर्णप्रकरणम् ]
यदि आहार विदग्ध हो जाता हो ( विदधाजीर्ण हो ) तथा भोजनके पश्चात् हृदय, कोठ और गले में दाह होती हो तो हर्र मुनक्का और मिश्रीको एकत्र पीसकर शहद में मिलाकर चाटना चाहिये ।
परिशिष्ट
(८८१४) अमृतादिकल्कः
( भा. प्र. 1 म. खं. २ )
अमृताकटुकायष्टी कल्कसमाक्षिकम् । गोमूत्र जयति सर्फ वातशोणितम् || धात्री हरिद्रामुस्तानां कषायं वा समाक्षिकम् ॥
गिलोय, कुटकी, मुलैठी और सोंठ समान भाग मिलित ( ३ माशे ) लेकर पानीके साथ बारीक पीसलें 1 इसे शहद में मिलाकर गोमूत्र के साथ सेवन करने से कफयुक्त वातरक्तका नाश होता है ।
आमला, हलदी और नागरमोथा, इनका क्वाथ शहद डालकर पीने से भी वातरक्तका नाश होता है।
(८८१५) अमृतादिचूर्णम्
(वै. म. र. | पटल ३ ) अमृताविडङ्गरास्ना दारुवराव्योष चूर्णसमतुलितम् सहसा सर्वान् कामान् सितारजः परिहरेत्सम धु॥
गिलोय, बायबिडंग, रास्ना, देवदार, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और खांड समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे शहद में मिलाकर चाटने से समस्त प्रकारके कास शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
( मात्रा - ३ माशा । )
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(८८१६) अर्कपत्रादिलवणम् (ग. नि. । अर्शो ४ ) लवणं ह्यर्कपत्राणि करीरतरुजान्यपि । मद्यैरम्लैश्च युक्तानि युक्तया क्षारं दहेत्पुटे || सुखोदकेन मधैर्वा रसैरम्लैश्च पाययेत् । पीतः क्षारो वयं हन्याद्वाताशस्यचिरेण तु ॥
सेंधा नमक, आक के पत्ते और करीरके फल (टेंट) समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर nusha भरें और इसमें मद्य तथा कांजी डालकर उसका मुख बन्द करदें | तत्पश्चात् उसे चूल्हे पर चढ़ाकर इतना पकायें कि सब चीजोंकी भस्म हो जाय । तदनन्तर उसके स्वांगशीतल होने पर हाण्डीसे औषधको निकालकर पीस लें ।
इसे उष्ण जल, मद्य, मांसरस अथवा कांजी के साथ पीने से वाता का शीघ्र ही नाश हो जाता है।
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( मात्रा - १ - १ ॥ माशा | ) (८८१७) अर्कमूलादियोगः
( रा. मा. । विषा. २८ ) अर्कमूलत्वचा चूर्ण पीतं शीतेन वारिणा । धरकाश्वमाराभ्यां गोनाशविषनाशनम् ।।
आककी जड़ चूर्णको शीतल जल के साथ पीनेसे धतूरे, कनेर और गोनास (सर्प विशेष ) का विष नष्ट हो जाता है ।
(८८१८) अलम्बुषादिचूर्णम्
(व. से. । उदरा. ) अलम्बुषाभत्रं चूर्ण पीतं काञ्जिकसंयुतम् । दौर्गन्ध्यनाशयत्याशु दृष्टं मेदोभवं नृणाम् ॥