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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चूर्णप्रकरणम् ] यदि आहार विदग्ध हो जाता हो ( विदधाजीर्ण हो ) तथा भोजनके पश्चात् हृदय, कोठ और गले में दाह होती हो तो हर्र मुनक्का और मिश्रीको एकत्र पीसकर शहद में मिलाकर चाटना चाहिये । परिशिष्ट (८८१४) अमृतादिकल्कः ( भा. प्र. 1 म. खं. २ ) अमृताकटुकायष्टी कल्कसमाक्षिकम् । गोमूत्र जयति सर्फ वातशोणितम् || धात्री हरिद्रामुस्तानां कषायं वा समाक्षिकम् ॥ गिलोय, कुटकी, मुलैठी और सोंठ समान भाग मिलित ( ३ माशे ) लेकर पानीके साथ बारीक पीसलें 1 इसे शहद में मिलाकर गोमूत्र के साथ सेवन करने से कफयुक्त वातरक्तका नाश होता है । आमला, हलदी और नागरमोथा, इनका क्वाथ शहद डालकर पीने से भी वातरक्तका नाश होता है। (८८१५) अमृतादिचूर्णम् (वै. म. र. | पटल ३ ) अमृताविडङ्गरास्ना दारुवराव्योष चूर्णसमतुलितम् सहसा सर्वान् कामान् सितारजः परिहरेत्सम धु॥ गिलोय, बायबिडंग, रास्ना, देवदार, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और खांड समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे शहद में मिलाकर चाटने से समस्त प्रकारके कास शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। ( मात्रा - ३ माशा । ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ (८८१६) अर्कपत्रादिलवणम् (ग. नि. । अर्शो ४ ) लवणं ह्यर्कपत्राणि करीरतरुजान्यपि । मद्यैरम्लैश्च युक्तानि युक्तया क्षारं दहेत्पुटे || सुखोदकेन मधैर्वा रसैरम्लैश्च पाययेत् । पीतः क्षारो वयं हन्याद्वाताशस्यचिरेण तु ॥ सेंधा नमक, आक के पत्ते और करीरके फल (टेंट) समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर nusha भरें और इसमें मद्य तथा कांजी डालकर उसका मुख बन्द करदें | तत्पश्चात् उसे चूल्हे पर चढ़ाकर इतना पकायें कि सब चीजोंकी भस्म हो जाय । तदनन्तर उसके स्वांगशीतल होने पर हाण्डीसे औषधको निकालकर पीस लें । इसे उष्ण जल, मद्य, मांसरस अथवा कांजी के साथ पीने से वाता का शीघ्र ही नाश हो जाता है। For Private And Personal Use Only ( मात्रा - १ - १ ॥ माशा | ) (८८१७) अर्कमूलादियोगः ( रा. मा. । विषा. २८ ) अर्कमूलत्वचा चूर्ण पीतं शीतेन वारिणा । धरकाश्वमाराभ्यां गोनाशविषनाशनम् ।। आककी जड़ चूर्णको शीतल जल के साथ पीनेसे धतूरे, कनेर और गोनास (सर्प विशेष ) का विष नष्ट हो जाता है । (८८१८) अलम्बुषादिचूर्णम् (व. से. । उदरा. ) अलम्बुषाभत्रं चूर्ण पीतं काञ्जिकसंयुतम् । दौर्गन्ध्यनाशयत्याशु दृष्टं मेदोभवं नृणाम् ॥
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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