Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अञ्जनप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
४२७
(८९१३) अश्वलालाद्यन्जनम्
(८९१४) अक्षयोगः
(धन्च.। नेत्ररोगा.) (हा सं. । स्था. ३ अ. १८)
विभीतकास्थिमज्जा तु शकनाभिर्मनःशिला । घोटकलालामरिच लवणयुतं निम्बपत्रमरीचानि अजामूत्रेण पेषयेत् ।।
नेत्रयोरअनं शस्तम् । | पुष्पं राज्यन्धतां हन्ति तिमिरं पटलं तथा ।। विनिहन्ति दिवसतन्द्रां निद्रां वा मानुषस्या ।। नाभि मनसिल, नीमके पत्ते और काली मिर्च
बहेड़ेकी गुठलीकी गिरी ( मज्जा ), शंखकाली मिरच और सेंधा नमकका चूर्ण बराबर इनके समान भाग मिलित चूर्णको बकरीके मूत्रमें बराबर लेकर दोनोंको एकत्र मिला कर घोड़ेकी खरल करके बर्तियां बना लें । लारमें पीसकर अंजन करनेसे दिनको तन्द्रा और इसे आंखमें आंजने से खके फूले रायंधना निदा आना बन्द हो जाता है। ! तिमिर, और पटलका नाश होता है ।
इत्यकाराद्यानप्रकरण
अथाकारादिनस्यप्रकरणम् (८९१५) अकोलबीजादितैलनस्यम् (८९१६) अङ्कोलमूलादिनस्यम् (ग. मा. । रसायना. ३२)
(रा. मा. । कामला.)
अकोलमूलमथवाऽर्कजटामपिष्टा अझोलबीजसितसर्षपसम्भवं य
स्वच्छेन तालजलेन समं प्रयवाद । निष्पीडनोक्तविधिना निपुणैहीतम् ।।
स्यात्कामलामयहरी कृतनावनानासमस्यकर्मनिरतस्य करोनि नूनं
माघ्रातमात्रमपि जालनिकाफलं वा ॥ विशत्समाभ्यधिकवर्षशतान्तमायुः ।। अंकोलकी जड़ या आककी जड़ अथवा अंकोलके बीज और सफेद सरसों समान
। कड़वी तोरीके फरको चावलोंके स्वच्छ धोवनके भाग लेकर दोनोंको एकत्र मिलाकर घानीमें
| साथ पीसकर नस्य लेने से कामला रोग नष्ट हो
जाता है। (कोल्हूमें ) तेल निकलवावें ।
(८९१७) अञ्जनरसः ___इस तेलकी नस्य लेने से १०० वर्षका वृद्ध (रसे. सा. सं. । सन्निपाता.) भी २० वर्षके युवाके समान ( बलि पलि-रहित ) गन्धेशं लशुनाम्भोभिर्मदैयेद्याममात्रकम् ।
तस्योदकेन संयुक्तं नस्यं तत्पतिबोधकृत् ।।
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