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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खकारादि-गुटिका (३२३) फूलों का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से रक्तपित्त | की दाह, शर्करा (रंग) अश्मरी (पथरी) मूत्ररोग का नाश होता है। और वीर्य सम्बन्धी रोगों का नाश होता तथा बल [१०६३] खदिरादियोगः और वीर्य की वृद्धि होती है। (ग. नि. । र. प्रमे.) [१०६५] खाडवं चूर्णम् खदिरं शकेरा दारुहरिद्रा मुस्तमेव च । [वृ. यो. त. । ८२ त.) पाठा च गुडमिश्रोऽयं हरेद्रोग प्रमेहजम् ॥ | तुल्यं तालीसचव्योषणलवण गजद्विःकणाग्रन्थ्यजाजीखैर, खांड, दारुहल्दी, नागरमोथा और पाठा वृक्षाम्लामित्वचं त्रिर्धनषदरधसमान भाग लेकर चूर्ण करके गुड़ में मिलाकर नैलाजमोदाम्लविश्वम् । सेवन करने से प्रमेह विकार नष्ट होते हैं। सार्धश्वेताग्निसारोऽतिसृति [१०६४] खजूरादिचूर्णम् (यो. र. । दाह.) कृमिवमौ खाडवोऽरुच्यजीणे। खजूरामलजीजानि पिप्पली च शिलाजतु । गुल्माध्माल्पानलाख्योदरएलामधुकपाषाणचन्दनैर्वा रुबीजकम् ॥ ___ गलगद्ग्र हवासकासे ।। धान्याकं शर्करायुक्तं पातव्यं ज्येष्ठवारिणा । तालीसपत्र, चव्य, कालीमिर्च, सेंधानमक, अङ्गादाहं लिङ्गदाहं गुदवङ्क्षणशुक्रजम् ॥ नागकेसर, गजपीपल, पीपल, पीपलामूल, जीरा, शर्कराश्मरिशूलप्नं वृष्यं बलकरं परम् ॥ तितिडीक, चीता, दारचीनी, तीन प्रकार का मोथा, नाशयेन्मूत्ररोगांश्च तथा शुक्रभवानपि ॥ | | बेर, धनिया, इलायची, अजमोद, अम्लवेत, सोंठ, ___खजूर, आमले की गिरी, पीपल, शुद्ध शिला- बसलोचन (अथवा खांड या श्वेत अपराजिताजीत, इलायची, मुल्हैठी, पाषाणभेदी (पत्थर चटा) कोयल) और रसौत का चूर्ण बनाकर सेवन करने से चन्दन, खीरे के बीज और धनिये के चूर्ण में खांड | अतिसार, कृमि, वमन, अरुचि, अजीर्ण, गुल्म, मिलाकर ज्येष्ठाम्बु (चावलों के पानी) के साथ | अफारा, अग्निमांद्य, उदररोग, गले के रोग, हृद्रोग, सेवन करने से अङ्गदाह, लिङ्गदाह, गुद और वंक्षण | हृद्ग्रह, श्वास और खांसी का नाश होता है। अथ खकारादि गुटिकाप्रकरणम् [१०६६] खदिरादि गुटिका (१) १-१ भाग तथा खैरसार (कथा) इन सबके बरा (यो. र. । मु. रो.) बर मिलाकर गोलियां बनावें । यं खदिरसारस्य त्वेषां चूर्ण विनिक्षिपेत् । | इन्हें हर समय मुंह में रखने से मुख रोग नष्ट होते हैं। जातीककोलकपरक्रमुकानां (णां) विचक्षणः॥ गुटिकास्तु प्रकर्तव्या मुखे स्थाप्याः सदैव हि ॥ [१०६७] खदिरादि गुटिका (२) (यो. र. । कास) नायफल, ककोल, कपूर और सुपारी का चूर्ण | खादिरं पौष्करं शृङ्गी कद्फलं विजयष्टिका । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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