Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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श्री धन्वन्तरये नमः
परिशिष्टम
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अथायुर्वेदीय परिभाषा
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प्रथमप्रकरणम्
मान - परिभाषा
औषध निर्माणके लिए मान (तोल) का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है क्याकि प्रयोग औषधियोंका परिमाण ठीक न होनेसे पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं हो सकता ।
प्राचीन कालमें अनेक प्रकारके मान प्रचलित थे परन्तु सम्प्रति शास्त्र में दो हो प्रकारके मानोंका अधिक व्यवहार पाया जाता है. १ मागध मान ( चरकोत मान) और २ कालिङ्ग ( सुश्रुतोक्त ) ।
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यों तो औषध निर्माण में चाहे जिस मानका व्यवहार क्यों न किया जाय औषधके गुणोंमें कोई अन्तर नहीं आ सकता परन्तु चरकके प्रयोगोंमें चरकीय मान का और सुश्रुत के प्रयोगों में सुश्रुतके मानका व्यवहार करना अधिक उत्तम है । अन्य ग्रन्थोंके प्रयोगों में write मानका व्यवहार विशेष सुविधा जनक प्रतीत होता है ।