Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषायप्रकरणम् ।
परिशिष्ट
३६५
(यह प्रयोग सं. १११३ के समान है परन्तु । रक्तप्रवाहं हृदयस्थितं वा वहां इसका अर्थ अशुद्ध छप गया है अतएव . बातो यथाऽभ्रं हरते तथैव ॥ यहां पुनः दिया गया है ।)
पीपल वृक्ष ( अश्वत्थ) की कोंपलोंका रस (८७९७) अश्वत्थादिकाथः
। ६ भाग ( ३ माशे ) लेकर उसमें ६ भाग बोल (वृ. मा. । प्रमेहा.)
। (बीजा बोल) का चूर्ण और १२ भाग शहद अश्वत्यचतुरङ्गुलन्यग्रोधादिफलत्रयम्। मिलाकर पीनेसे रक्त प्रवाह बन्द हो जाता है। सरक्तसारमनिष्ठा क्वाथाः पश्च समाक्षिकाः ।। नीलहारिद्रशुक्ताख्यक्षारगण्डीरिकाहयान् । '
(८७९९) अष्टादशाङ्गकाथ: मेहान्हन्युः क्रमादेते सक्षौद्रो रक्तमेह जित् ॥ (३. मा. ; भा. प्र. ग. सं. २ । ज्वरा.! क्वाथः खर्जुरकाश्मयतिन्दुकास्थ्यमृताकृतः ॥ दाक्षाऽनता शठी की मस्तकं रक्तचन्दनम् । (१) पीपल वृक्ष ( अश्वत्थ )की छाल (२)
नागरं कटुकं पाठा भूनिम्ब सदुरालभम् ! अमलतासकी छाल (३) बड़की छाल (४) त्रिफला
जशीरं पद्मकं धान्यं बालकं कण्टकारिका । (५) लाल चंदन और मजीठ; ये पांच क्वाथ
! पुष्करं पिचुमन्दं चाष्टादशाङ्गमिदं शुभम् ॥ क्रमश: नील मेह, हारिद्र मेह, शुक्त मेह, क्षार मेह
जीर्णज्वरारुचिश्वासकासश्त्रपथुनाशनम् ।। और मानिष्ठ मेहको नष्ट करते हैं। इनमें शहद मिलाकर पीना चाहिये।
___ द्राक्षा ( मुनक्का गिलोय, कचूर, काकड़ाखजूर, खम्भारी छाल, तेन्दुके फलकी गुठली, सिंगी, नागरमोथा, लाल चन्दन, सांठ, कुटकी, और गिलोय; इनके क्वाथमें शहद मिलाकर पीनेसे | "
| पाठा, चिरायता, धमाता. खस, पाक, धनिया, रक्तप्रमेह नष्ट होता है।
सुगन्ध बाला, कटेली, पोखग्मूल और नीमकी छाल;
ये अठारह औषधिया समान भाग लेकर वाथ (८७९.) अश्वत्थादियोगः (यो. र. । रक्तपित्ता.)
बनावें। अश्वत्थपत्रागरसात्पडशो
___यह क्वाथ जोर्ण पा, अरुचि, श्वास, कास बोलोऽथ तस्माद्विगुणं मधु स्यात् । और शोथको नष्ट करता है।
इत्यकारादिकषाय-प्रकरणम्
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