Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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खकारादि-लेह
(३३१)
___बवासीर, मूढवात और विशेषतः अग्निमांद्य । [१०८६] खण्डामलकं च खण्डहरीतकी की शांति के लिये पेठे के समान ज़िमीकन्द का । (वृ. यो. त; ७६ त.) अवलेह बनाकर सेवन करना लाभदायक है। | (आमले और हैड़ का मुरब्बा) [१०८५] खण्डामलकीयं रसायनम् । कार्पासीदलसंस्तरे ससलिले भाण्डे शिवां वाऽ(ग. नि. । शुल.)
भयाः संस्वेद्याथ परत्र वारिणि पुनस्तोयान्तरे स्विन्नपीडितकूष्माण्डतुलाधं भृष्टमाज्यके ।
ताः प्लुताः। प्रस्थाधै खण्डतुल्यं तु पचेदामलकीरसात् ॥ विद्ध्वा वंशशलाकयाऽथ विजलाः खण्डस्य प्रस्थे तु स्विन्नकूष्माण्डरसप्रस्थे च घट्टयन् । पाके शनैः पक्त्वा मिष्टशिवानि दधतेऽसक्दीलेपं गते तस्मिन् चूर्णीकृत्य विनिक्षिपेत् ॥
पित्तरोगे नृणाम् ।। द्वे द्वे पले कणाजाज्योः शुण्ठीनां मरिचस्य च। आमलों अथवा हैंड़ों को कपास के पत्तों के पलं तालीसधान्याकचातुर्जातकमुस्तकम् ।।। ऊपर रखकर + पानी में पकावें । जव यह उसीज कर्षप्रमाणं प्रत्येकं प्रस्थाध माक्षिकस्य च। जायें तो उन्हें दूसरे पानी में भिगोकर बांस की सींक पक्तिशुलं निहन्त्येतद्दोषत्रयकृतं च यत् ॥ में छेद कर धोकर ज़रा सुखालें, जब पानी सुख छधम्लपित्तमूर्छाश्च श्वासकासावरोचकम् । जाए तो खांड की चाशनी में डालकर मन्दाग्नि हृच्छूलं रक्तपित्तं च पृष्ठशूलं प्रणाशयेत् ॥ पर पकायें । रसायनमिदं श्रेष्ठ खण्डामलकसंज्ञकम् ॥ इनके सेवन से रक्तपित्त का नाश होता है।
प्रथम उसीजे और निचोड़े हुवे पेंट के ३ सेर (१०८७) ग्वण्डाकावलेहः आधपाव टुकड़ों को १ सेर घी में भूनें फिर उसमें (ग. नि. । ५ अवलेहा.) ३ सेर आधपाव खांड २ सेर आमले का रस और |
सुस्विन्नाच्छृङ्गवेरपलशतमनवं निस्तुषं संवि२ सेर उसीजे हुवे पेरे का रस * मिलाकर पकायें।
| धाय, प्रस्थे चाज्यस्य पक्त्वा पलशतसहितं जब गाढ़ा होकर करछी को लगने लगे तो उसमें
शुद्धमत्स्यण्डिकायाः। पीपल, जीरा और सोंटका चूर्ण १० --१० तोला
कौरङ्गी देवपुष्पं मधुदलकणानागरिजल्कभृङ्गं मरिच का चूर्ण ५ तोला तथा तालीसपत्र, धनिया
शुक्लाजाजी सघनमरिचतुगा साधकर्षद्वयाः स्युः॥ चातुर्जात और नागरमोथका चूर्ण १।-१। तोला
तस्मिन्नीरं विदित्वा ज्वलनमुखगतं पात्रमुत्तार्य मिलावें, एवं टंडा होनेपर १ सेर शहद मिलाकर रखें।
यत्नात्, कृत्वा चेषन्मदशशिसुरभितं चूर्णिते___ इसके सेवन से त्रिदोषज पक्तिशूल, वमन,
नावचूर्ण्य । अम्लपित्त, मूर्छा, स्वास, खांसी, अरुचि, हृच्छ्ल, प्रातः शीतेऽतिमात्रं मधुकुडवयुगंसार्धमावाप्य रक्तपित्त और कमर का दर्द नष्ट होता है।
+ बांसकी खपचों या सीखों आदिकी ___* इसमें २५ सेर पानी भी डालना टट्टीसी बनाकर उस पर कपासके पत्तों बिछा चाहिए । अनु०
कर उनपर हैड या आमले रक्खें । अनु०
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