Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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खकारादि-लेह
(३२९)
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छानकर उसमें मनसिल या सोना मक्खीके योगसे । शुण्ठीद्विजीरपथ्यान्दमांसीधात्रीत्रिजातकम् ।। की हुई रुक्म लोह की भस्म ०॥ सेर, खांड १ ! पृथक् द्वादशमापं हि षण्माष नागकेसरम् । सेर और धी २ सेर डालकर तांबेकी कढ़ाईमें पका- | खदिरं मरिचं शीते क्षिपेत्क्षौद्रपलत्रयम् ।। कर गुड़पाक के समान गाढ़ा करें। फिर उसमें शूलाम्लपित्तवान्त्यग्निमान्द्यजित्खण्डपिप्पली॥ शहद १ सेर, बंशलोचन, शिलाजीत, दालचीनी, | । पीपलका चूर्ण ०। सेर, धी ०॥ सेर, शताकाकड़ासींगी, बायबिडंग, पीपल, सोंठ और ज़ीरा वरीकास्वरस १ सेर, दूध ४ सेर और खांड १ सेर ५-५ तोला, त्रिफला, धनिया, तेजपात, काली .
लेकर यथाविधि पाक बनावें, फिर उसमें धनिया, मिर्च और केसर (या नागकेसर)का चूर्ण १।-१। सोंठ, दोनों जीरे, नागरमोथा, जटामांसी, आमला तोला मिलाकर चिकने बरतनमें भरकर रक्खें ।।
और त्रिजातकका चूर्ण १-१ तोला तथा इसे यथोचित काल में १। तोला की मात्रा
नागकेसर, खैरसार और कालीमिर्चका चूर्ण ६-६ नुसार सेवन करनेसे रक्तपित्त, क्षय, खांसी और
माशे मिलावें एवं ठंडा हो जाने पर ३० तोला विशेषतः पक्तिशूल तथा वातरक्त, प्रमेह, शीतपित्त
शहद मिलाकर रक्खें। वमन, क्लान्ति, सूजन, पाण्डु, कोद, तिल्ली, उदररोग, अफारा, रक्तस्राव और अम्लपित्त का
यह अवलेह शूल, अम्लपित्त, वमन और
अग्निमांद्य नाशक है। नाश होता है।
यह अवलेह नेत्रोंके लिए हितकारी, वृंहण, [१०८१] ग्वण्डपिप्पल्यवलेहः (२) वृष्य, मंगलकारक, प्रीतिवर्द्धक, आरोग्यदाता, पुत्र- (वृ. यो. त.। १२२ त.) दाता, श्रेष्ठ, शारीरिक शक्ति और जठराग्नि वईक, पिप्पल्याः कुडवं चूर्ण घृतस्य कुडवद्वयम् । सौन्दर्यवर्द्धक तथा शरीरको हल्का करनेवाला है। पलषोडशकं खण्डाच्छतावर्याः पलाष्टकम् ॥
पध्य-नारियलका पानी, सुनिषण्णक (चौप- शिवायाः स्वरसस्यापि पलषोडशकं मतम् । तिया-चका भेद) शाक, बथुआ, सूखीमूली,जीवाख्य क्षीरप्रस्थद्वये साध्ये लेहीभूतेऽत्र निक्षिपेत॥ (शाक विशेष) पटोल, कटेलीके फल, बैंगन, पकान्न, त्रिजातकामयाजाजीधान्यमुस्तशिवातुगाः। खजूर और मीठा अनार ।
एतेषां कार्षिक चूर्ण कर्षाधे कृष्णजीरकम् ।। अपथ्य (परहेज) जिन के नाम के आदि में नागरं नागकं जातीफलं समरिचं हिमम् । ककार हो ऐसे जीवोंका मांस और आनृपदेशीय दत्त्वा पलत्रयं क्षौद्रं स्निग्धभाण्डे निक्षिपेत् ॥ जीवोंका मांस ।
| प्रातयथावलं लिह्यादम्लपित्तप्रशान्तये । [१०८०] खण्डपिप्पली (१) | हल्लासारोचकच्छर्दिपिपासादाहनाशनम् ॥ ___ (र. र.। अम्ल. पि.)
शूलहृद्रोगशमनं हृद्यं चेदं रसायनम् ॥ कणाचूर्णस्य कुडवं षट्पलं हविषस्तथा। पीपलका चूर्ण ०। सेर, घी १ सेर, खांड १ वरीरसात्पलान्यष्टौ क्षीरप्रस्थद्वयन्तथा ॥ सेर, शतावरीका स्वरस १ सेर, आमलेका स्वरस खण्डप्रस्थं पचेत्तत्र सिद्ध संचूर्ण्य धान्यकम् ।। २ सेर और ४ सेर दूध लेकर यथाविधि अवलेह
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